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मैं तुम्हें कितने पैगाम लिखती हूँ , सलोनी

कान्हा
पूछो इस दिल से
कि मैं तुम्हें कितने पैगाम लिखती हूँ
पागल सी हो गयी हूँ हर पल मैं तुम्हारा
नाम लिखती हूँ
वो आँखों से शरारत करते हैं
अपनी अदा से यूँ कयामत करते हैं
निगाहें उनके चेहरे से हटती नहीं
और वो मेरी आँखों को गुनहगार कहते हैं
बेवफा भी नहीं कह सकते प्यारे तुझे
क्योंकि प्यार तो हमने किया है
कान्हा कैसे करुँ शुक्रिया तेरी रहमतों का
मुझे माँगने का सलीका नहीं आता
और तु देने की हर अदा जानता है
क्योंकि तेरी रहमतों की क्या गिनती
तेरे उपकारों का कोई हिसाब नहीं
लिख सके जो उसकी दया की कहानियाँ
ऐसी कोई किताब नहीं
हे श्याम कहो तो फूल बन जाऊँ
सुना है रेत पे चल कर तुम महक जाते हो
कहो तो अबकी बार जमीन की धुल बन जाऊँ
क्योंकि बहुत नायाब होते हैं जिन्हें तुम अपना
कहते हो
इजाजत हो तो मैं भी तुम्हारी बन
जाऊँ
देखो आज फिर तेरी यादों ने परेशां किया है
आँखें नम और मन व्याकुल हुआ है
मिल कर बिछुड़ने का दर्द सिर पे सवार हुआ है
आज फिर देख मेरी जान हलक पे आई है
तू न आया
आज फिर वही रूसवाई सी छाई है

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