🌿🌸श्रीकृष्ण बाल लीला🌸🌿
(बावरी ग्वालिन का उलाहना)
उस दिन तो श्यामसुन्दर ने दाऊ भैया के साथ ग्वालिन का न केवल माखन चोरी कराया, बल्कि स्वयं सारे बछडों को खोलकर उसका सारा दूध भी पिलवा दिया।
ऊपर से तुर्रा ये कि जब पकडे गये तो उल्टा ग्वालिन पर ही दोष मढ़कर उसे चकमा देकर भाग लिये।
ग्वालिन बावली सी होकर ठगी सी खड़ी देखती रह गई।
ब्रज में प्रतिदिन का अभ्यास है कि गोपांगनायें उषाकाल से कुछ पहले ही उठ पड़ती हैं और अपने कोटि-कोटि प्राणोपम नयनमनोभिराम नित्यनव सुन्दर नीलमणि की ललित लीलाये गाती हुई दही मथती हैं।
अभ्यासवश ठीक उसी समय उसे वाह्य ज्ञान हुआ और फिर नयन-मन-चोर नीलमणि को देखने के लिये उसके प्राण व्याकुल हो उठे।
पर अभी तो रात थी। प्रभात में तीन घडी का विलम्ब था।
तीन घडियां तीन कल्प सी बीतीं। आखिर प्रभात हुआ।
परन्तु इस समय जाने पर नंदरानी पूछेंगी क्यों आयी है ? तो क्या उत्तर दूँगी ?
समाधान न होने पर ग्वालिन के प्राण छटपटा उठे। उसकी व्याकुलता से द्रवित होकर अन्तर्यामी ने तुरंत उपाय सुझा दिया --
"उलाहने के बहाने चली जा।"
फिर देर क्या थी, ग्वालिनी चल पडी।
विद्युत वेग से नन्दरानी के घर जा पहुँची।
नंदरानी ने पूछा -
"इतने सबेरे कैसे आयी बहन ?"
ग्वालिन उत्तर देने जा रही थी कि यशोदानन्दन शय्या से उठकर आँखे मलते हुए वहीं चले आये।
आज शायद यह पहला ही अवसर है कि यशोदानन्दन अपने आप निद्रा त्याग कर शय्या से उठकर बाहर आये हैं।
ग्वालिनी की दृष्टि श्यामसुन्दर के विधि-हर-मुनि-मोहन वदनारविन्द पर पडी, फिर क्या था --
भूली री उराहने को दैबो।
परि गये दृष्टि स्यामघन सुंदर चकित भई चितैबो।
चित्र लिखी-सी ठाडी ग्वालिन को समुझै समुझैबो।
चत्रभुज प्रभु गिरिधर मुख निरखत, कठिन भयो घर जैबो।
कुछ देर निश्चल खड़ी रहकर, फिर विक्षिप्त सी गाती हुई ग्वालिनी पीछे की ओर लौट चली।
श्यामसुन्दर के मनोहर मुखारविन्द पर मधुर मन्द मुस्कान है अौर मैया के मुख पर अत्यन्त आश्चर्य।
ग्वालिन बावरी सी गाती जा रही है -
तव सूनुर्मुहुरनयं कुरुते।
अकुरुत किं वा व्यञ्जितमुरू ते।
मुञ्चति वत्सान् भ्रामं भ्रामम्।
साचिव्यं वः कुरूते कामम्।
असमयमोचनसुखनिधाम्।
कः किं कुरूते न यदि निदानम्।
विना निदानं कुरूते स्वामिनी।
क्रोशं न किमिव कुरूषे भामिनि।
(श्री गोपाल चम्पूः)
"अरे नन्दरानी ! तुम्हारा यह लाडला बार बार अनीति करता है। इसने क्या किया है ? यह तुम्हे अच्छी तरह मालूम है। यह चलता फिरता बछडों को खोल देता है। मैं सब समझती हूँ कि तुम लोगो की सलाह से ही यह सब कुछ करता है।
यदि तुम्हारा संकेत न हो तो असमय में ही बछडों को खोल देने जैसा अप्रिय कार्य यह कैसे कर सकता है ?
यदि तुम यह कहो कि यह सब कन्हैया तुम्हारी सलाह से ऐसा नही करता है, तो फिर तुम इस डाँटती क्यूँ नहीं ...???
🌿🌸जय हो नटखट कान्हा की🌸🌿
(लीला सूत्रधार- परमसिद्ध संत श्री राधाबाबा)
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