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भगवदीय संग

भाव के संग का रंग जरूर लगता है। जिसकेहृदय में भगवद् भाव होता है उनके नेत्रो से प्रवाह रूप से भगवद् रस सदा बहता है, और ऐसे भगवदीय के सान्निध्य मे आते ही जीव उस रस से भीग जाता है।

भगवदीय का संग अति दुर्लभ है। केवल ग्रंथो को पान करने से ज्ञान जरूर से प्राप्त होगा, पर भक्ति का उदय नहीं होगा। जब तब किसी भगवदीय का संग प्राप्त नहीं होता तब तक भगवद् भाव स्फुरित नहीं होता, और संग प्राप्त होते ही भक्ति का उदय होता है।

किसी दिये से हम एक और दिया प्रगटाये तो पहले दिये की ज्योत कम नहीं होती, परंतु दूसरा दिया भी उतनी ही ज्योत देगा। और भगवदीय भी वही जो यह भावना रखे की यह मेरे संग मे आया है, तो भक्तिके पंथ मे मुझसे भी आगे कैसे निकले। भाव देख कर प्रसन्न हो, ना की उसकी इर्षा करे।ऐसे भवदीय का संग करना की 'जिनके संग प्रताप से होत श्याम सो रंग।'.........

जय श्री कृष्ण

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