Skip to main content

यह रस नित्य विहार बिनु

जै जै श्री हित हरिवंश।।

यह रस नित्य-विहार बिनु, सुन्यौ न देख्यो नैन। एक प्रीति वय रूप दोउ, बिलसत इक रस मैन।।7।।

नैना तौ अटके जहाँ, तहाँ न बिछुरन होइ। इक रस अदभुत प्रेम के, सुखहि लहै दिन सोइ।।8।।

व्याख्या  :: यह अदभुत प्रेम श्री श्यामाश्याम के नित्य-विहार रस के अलग क्या हो सकता है जोकि कही अन्य सुना व् देखा नही गया है, जहाँ एक प्रीति में बंधे एक उम्र, एक रस में विलास करते दो रूप है।।7।।

व्याख्या  :: जिस जगह पर नैन रूप दर्शन में उलझे है वहाँ क्षण का भी बिछुड़ना नही है, वहीँ प्रेमी, श्री श्यामाश्याम के इस अदभुत प्रेमरस के अक्षुण्ण आनन्द मर्म जानते है।।8।।

जै जै श्री हित हरिवंश।।

जिन श्रीराधा के करैं नित श्रीहरि गुन गान।
जिन के रस-लोभी रहैं नित रसमय रसखान॥
प्रेम भरे हिय सौं करैं स्रवन-मनन, नित ध्यान।
सुनत नाम ’राधा’ तुरत भूलै तन कौ भान॥
करैं नित्य दृग-‌अलि मधुर मुख-पंकज-मधु-पान।
प्रमुदित, पुलकित रहैं लखि अधर मधुर मुसुकान॥
जो आत्मा हरि की परम, जो नित जीवन-प्रान।
बिसरि अपुनपौ रहैं नित जिन के बस भगवान॥
सहज दयामयि राधिका, सो करि कृपा महान।
करत रहैं मो अधम कौं सदा चरन-रज दान॥

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...