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गदगद बानी कण्ठ में

गदगद बानी कंठमें,आंसु टपके नैन
यह तो विरहणी कृष्णकी ,तलफत रहे दिनरैन
यह विरह नी बोरी भई,जानत ना कोई भेद
अग्नि बळे हीयरा झरे,भये कलेजा छेद
जाप जपे तो कृष्णका,ध्यान धरे तो पिया
जीव विरहणीका पियु हुआ पियु विरहनका जीय
प्रेम बोलनो सहज हई,नहीं प्रेम पहेचान
आठो पहेर भींजो रहे,मनु प्रेम नित्य जान

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