🙏🙏🚩श्री राधा का स्वरुप 🚩🙏🙏
जहाँ कोई आकांक्षा नहीं, जहाँ कोई वासना नहीं, जहाँ अहम् का सर्वथा विस्मरण - समर्पण है, जहाँ केवल प्रेमास्पद के सुख की स्मृति है और कुछ भी नहीं - यह एक विचित्र धारा है और इस धारा का मूर्तिमान रूप ही श्री राधा है. जितनी और सखियाँ है, जितनी और गोपांगनाएं हैं, वे सब राधाव्युह के अंतर्गत आती हैं और राधा इस भाव धारा की मूर्ति मति सजीव प्रतिमा हैं. राधा का आदर्श - राधा का जीवन इसीलिए ब्रह्मविद्या के लिए भी आकांक्षित है.
यह कथा आती है पद्मपुराण के पतालखंड में - ब्रह्मविद्या स्वयं तप कर रही हैं. उनको तप करते देखकर ऋषि पूछते हैं कि आप कौन हैं ? आप क्यों इतना कठिन तप कर रही हैं ?
ब्रह्म विद्या ने कहा-- में ब्रह्मविद्या हूँ . ऋषियों ने पूछा आपका कार्य ? ब्रह्मविद्या ने कहा - कि सारे जगत को अज्ञान से मुक्त करके ब्रह्म में प्रतिष्ठित कर देना - यह मेरा कार्य है. सारे जगत के अज्ञान तिमिर को सर्वदा के लिए हर लेना और ज्ञान को प्रकाशित करना यह उनका स्वाभाविक कार्य है.
ऋषियों ने पूछा - तो फिर आप तपस्या क्यों कर रही हैं ? वे यह तो न कह सकीं कि राधा भाव की प्राप्ति के लिए. उनकी यह कह सकने की भी हिम्मत न पड़ी.
उन्होंने कहा - गोपीभाव की प्राप्ति के लिए. गोपीभाव बड़ा विलक्षण है. "श्री राधा गोविन्द के सुख की सामग्री एकत्र कर देना जिनके जीवन का स्वभाव है - वे हैं गोपी".
अपनी बात कहीं नहीं है, जगत की स्मृति नहीं है, ब्रह्म की परवा नहीं है, ज्ञान का प्रलोभन नहीं है. अज्ञान का अँधेरा तो है ही नहीं. वहाँ केवल एक ही बात है, दूसरी चीज है ही नहीं. गोपी केवल एक ही बात को लेकर जीवित रहती है कि वह राधा गोविन्द को कैसे सुखी देख सकें. बस इसी गोपीभाव में इस प्रकार का प्रलोभन है, इस प्रकार का आकर्षण कि ब्रह्मविद्या ही नहीं, स्वयं इस भाव की प्राप्ति के लिए, इस रस का आस्वादन करने के लिए, इस प्रकार की लीला करने को बाध्य होते हैं, जिससे इस परम पुनीत, परम आधारश प्रेम राज्य की कुछ थोड़ी सी झांकी जग को प्राप्त होती है.
तो यह श्री राधा भाव क्या है ? भगवान् के स्वरुप का एक भाव है – आनंद, यह अंश नहीं, अनान्दांश. सत भगवान् का स्वरुप, चित भगवान् का स्वरुप, आनंद भगवान् का स्वरुप. तो भगवान् का जो स्वरूपानंद है, उस स्वरूपानंद का वैष्णव शास्त्रों में नाम है अल्हादिनी शक्ति. इस अल्हादिनी का जो सार है, जो सर्वस्व है, उसे कहते हैं प्रेम. उस प्रेम का जो परम फल है, उसे कहते हैं भाव और वह भाव जहाँ जाकर परिपूर्ण होता है, उसे कहते हैं महाभाव. यह “महाभाव” ही “श्री राधा” है.
भाव के अनेक स्तर हैं - रति, प्रेम, स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव और महाभाव - ये सभी अल्हादिनी शक्ति के ही भाव हैं . इन सारे भावों का जहाँ पूर्णतम प्रकाश, अनन्ततम प्रकाश है - वह श्री राधा भाव है. अब श्री राधा क्या हैं ? यह कोई नहीं बता सकता कि वे क्या है ? राधा हैं - श्री कृष्ण का सुख, राधा है - श्री कृष्ण का आनंद, राधा न हो तो श्री कृष्ण के आनंद रूप की सिद्धि ही न हो. श्री कृष्ण के आनंद का नाम है - राधा.
श्री राधा भाव में दोषदर्शन भी है, श्री राधा भाव में गुण दर्शन भी है, श्री राधा भाव में निर्गुण की झांकी भी है और राधा भाव इन सबसे परे की अचिन्त्य वस्तु भी है. जिसका जैसा भाव है, वह अपने भाव के अनुसार राधा के दर्शन करता है. अपने साधन की दृष्टि से ही वह राधा को देखता है. परमोच्च प्रेम राज्य की आदर्श महिमा यदि कहीं प्रकट हुई है तो वह राधा भाव में हुई है. राधाभाव का संकेत श्रीमदभागवत में भी है. राधा भाव नित्य भाव है. जैसे राधा नित्य है, वैसे ही राधा का भाव नित्य है, वैसे ही उनका रास नित्य है. इसमें किस तरह की साधना किस प्रकार से करनी पड़ती है, इसका संकेत आगे श्रीजी की कृपा से अन्यत्र करेंगे.
इतनी समझ लेने की चीज है कि यह साधन राज्य की एक ऐसी विलक्षण धारा है, जिस धारा में किसी भी दूसरे प्रकार का इसके साथ संपर्क नहीं है, जो इसको प्रभावित कर सके. इसीलिए राधाभाव की साधना वाले जो लोग हैं, वे इस भाव को ज्ञान कर्म आदि से शून्य कहते हैं. इसमें उनके संस्पर्श लेश का भी अभाव है. तो क्या यहां अज्ञान है ? तो क्या इस साधन में किसी क्रिया का सर्वथा अभाव है ? न तो इसमें क्रिया का सर्वथा अभाव है, न यहां ज्ञान का अभाव है तथा न यहां पर अज्ञान की सता है.
इसीलिए यह इस प्रकार का विलक्षण भाव है कि जहाँ पूर्ण ज्ञान होते हुए भी ज्ञान की सत्ता नहीं है, जहाँ जीवन में एक-एक क्षण, एक-एक पल प्रेमास्पद की सेवा में रममाण रहते हुए भी क्रिया का सर्वथा अभाव है. क्षण भर के लिए भी अवकाश नहीं है - प्रेमी को. वह सोता नहीं, अलसाता नहीं, भागकर जंगल में जाता नहीं, वह घर में रमता नहीं, परन्तु उसको अवकाश नहीं. फिर भी उसके पास कर्म संश्रव लेश नहीं. कर्म से अलिप्त जीवन है उसका.
उसका राधा भाव में कर्म से अलिप्तता है और है ज्ञान से अलिप्तता. जो ज्ञान अज्ञान को मिटाता है, जो ज्ञान किसी को प्रभावित करता है, जिस ज्ञान से किसी ज्ञान कि सत्ता कि सिद्धि होती है, वह ज्ञान यहां नहीं है. ज्ञान की असत्ता है - पर पूर्णतम ज्ञान है. कर्म की असत्ता है, पर प्रेमास्पद की सेवारूप कर्ममय जीवन है. कर्म नहीं, ज्ञान नहीं. ज्ञान कर्मादि संस्पर्श शून्य जो केवल प्रेमभाव है, वही महाभाव है और उसी महाभाव कि मूर्तिमती प्रतिमा श्री राधा है . यह श्री राधा जी का एक आदर्श स्वरुप है -
🙏🏼🙏🏼🚩“जय जय श्री राधे” 🚩🙏🏼🙏🏼
★★राधे राधे !! जय गोविंदा जय गोपाला, जय जय श्री राधेकृष्णा !! मुरली मनोहर, कृष्ण कन्हैया ! सब बोलो जय श्री राधेकृष्णा !!★★
👉👉 जीवन में परम सुख़ और कल्याण के लिये सदैव जपते रहिये
👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे !
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे !!
🙏🐚💐🌾🔆🌹🌷🌸🍀🌿🌻
Gali Result aur Satta King dono mein ek psychological connection hota hai – calm mind se guess best lagta hai.
ReplyDeleteReal Satta King players know how crucial it is to track Gali Result quickly and accurately. This website offers just that — clean updates, no confusion, and no fake info. I’ve seen many sites try to offer Satta King results but none come close to the reliability here. If you value consistency and timely updates, this is your best bet. It’s now part of my daily routine, and I’m genuinely impressed.
ReplyDelete