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रागः ईमन
मोपै कैसी यह मोहिनी डारी ।
चितचोर छैल गिरिधारी ।।
ग्रहकारजमें जी न लागत है,खानपान लगै खारी ।
निपत उदास रहत हौं जबते,सूरत देखि तिहारी ।।
मोपै कैसी यह मोहिनी डारी ।
संगकी सखी देतिमोहिं धीरज,बचन कहत हितकारी ।
एक न लगत कही काहूकी, कहति कहति सब हारी ।।
मोपै कैसी यह मोहिनी डारी ।
रही न लाज सकुच गुरुजनकी,तन मन सुरति बिसारी ।
नारायण मोहिं समुझि बावरी,हँसत सकल नर नारी ।।
मोपै कैसी यह मोहिनी डारी......
चितचोर छैल गिरिधारी....मोपै कैसी यह मोहिनी डारी ।।
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