ब्रज भाव की पात्रता :
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जो साधकगण धन, स्त्री, मान और इसके संग का पूर्णतया परित्याग करने को कटिबध हो, इन्द्रिय सुख की वासना का सर्वथा त्याग करने को कृतसंकल्प हो, जन संसर्ग में पूर्णतया अरतिकर प्रिया प्रियतम के नाम लीला गुण आदि के अतिरिक्त कुछ भी श्रवण,मनन एवं कथन के प्रति उपरत हों निजसुख-यहां तक कि मोक्ष तक का त्याग करने की इच्छा किये हों !
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अपने को ब्रज की एक अकिञ्न किंकरी के अनुगत होकर सेवाभाव का अवलम्बन करने की रुचि रखते हों, नाम-कीर्ति की , लोक परलोक की, किसी भी सद्गति की जिनमें चाह नही हो, वे ही अपने जीवन में कभी प्रिया-प्रियतम की कृपा से इस धाम की झांकी पाने के अधिकारी हो सकते हैं!
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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