प्रीत की रीत निराली
अहा।।
प्रीति।।
कितना सुखद सा एहसास है
है ना।।
पिया से प्रीत लगाई तो
'प्रीति'हो गई
वाह मेरे दिलदार सजन।।
हुआ क्या ।।
अरी मत पूछ सखी री
पगली
सब जान गई
उनके दिल की
और वो मेरे दिल की
उनके संग संवर गई
निखर सी गई
संगिनी
संग हुई और समा गई पिया में
और पिया मुझमें
पता ही नहीं
कौन किसमें
कुछ भिन्न नहीं
कुछ कहे बिन सब बोध हो गया
कुछ शेष नहीं
सब एक रस एक भाव
अब शांत
वो भी मैं भी
एक दम शांत
उनके संग
फिर क्या ।।
वो हुआ जो कभी न हुआ
पलक उठी और मिल गई पी से
लाख झुकाई
पर निगोड़ी मिल ही गई
जी भर देखा नहीं
बस एक अदना सी चिंगारी सी
ज्यों जगी त्यों बुझी
बस।।।।
उस एक एहसास से
नम हो गई
और एक आंसु
एक आंसु
मैं फिर मैं हो गई
जो नहीं होना था
पृथक सी
कहा था आंसु मत बहाना
मैं क्या रोते देख प्रसन्न होता हूँ
रोने से पिघलता हूँ
ना
नहीं
जहाँ जिसके लिए पिघलना होगा
तो ही
नहीं तो लाख कोई रोए
जब तक मन मक्खन न हुआ तब तक नहीं ।
तुम तो संग हो
तो संग होके भी आंसु
आह।।
छलक गई
जैसे उनकी आंख का आंसु ही
तड़प गई
पर इतने दिलदार ज़मी पे न गिरने दिया
हाए।।।
चरणों से लिपटाया
जैसे
जैसे मेरे ही मन की कर रहे हों
कुछ देर पड़ी रही
इक बूंद सी
पर उनसे दूर
नहीं
नहीं दूरी सही नहीं जाती
वे खड़े
निहार रहे थे
जानते थे उठुंगी
सो बाहें पसार दी
पगली
दूर रही तो मर जाएगी
मुझे भी उठना था
उन तक
रोने और गिरने छलकने के लिए नहीं
उनकी भीतर की पुकार के लिए
उठना ही था
प्रेम के अथाह सागर की बूँद नहीं
एक तरंग जो उठेगी
चाँद को छुएगी
फिर मुझमें समाहित होगी
और वही हुआ भी
वो जिसे चाहें
उसे बिखरने नहीं देते
समेट लिया
मिला दिया खुद
आंख का आंसु बन बहने के लिए नहीं
प्रेम के लिए बनी हो तुम
स्वभाव है तुम्हारा प्रेम
प्रीत लगाई है तुमने
तो अब निभाओ भी
आंसु बन बहोगी तो बहती ही रहोगी
खुद से कैसे सिमट पाओगी
प्रीत जग से करोगी
सब में मुझे ही देखोगी
मेरी प्रीति हो मुझ तक उठ जाओगी
आंसु बन बही तो लुप्त हो जाओगी
प्रीत बन बही तो मेरे दिल में जगह पाओगी
बोलो कब तक यूँ नज़र न मिलाओगी
मेरी हो मेरी संगिनी
मुझे ही संग पाओगी
जब प्रीत मेरी निभाओगी
तब तुम
तुम न रहोगी
मैं हो जाओगी
मेरी प्रीत बन
मेरे हृदय में समा जाओगी
हृदय में समा जाओगी।।
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