नटखट ने लगाई मेहँदी
राधिका के रेशमी करतल में।
देह पूर्ण संगीत बनी है
अंग-प्रत्यंग में राग-रागिनी
तन-विदेह, मन से मन एक
फूल-बाणों से बिंधें बिँधे
समग्र सुर एकात्म बाँसुरी में।
सत्य है यह,नहीं ठिठोली है
लजीली भोली हुई गुलाल सम
मुख पर स्वर्णिम सुर्ख रंगोली है
नयनों में साँझ, झीने झीने अवगुंठन में।
अश्रु-मुक्ता से भर गई अँखिया
खो गई ऐसी बृषभानुनंदिनि
पिय समक्ष,स्वप्न सम सुध-बुध
डरपति, कहीं बदल न जाये मिलन विरह में।
हिय-उमढ़ता आनन्द-अमिय-रस
मन में शुक-पिक सा गुँजन अभिनन्दन
मुख स्मित,करतल चित्रित
लजीली चितवन दोऊ ओर,गढ़ रही अवनि में।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)
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