राधाकृष्ण एक है (पौराणिक और शास्त्रोक्त आधार) --
श्रीराधा श्रीकृष्ण की अभिन्नस्वरूपा है । भगवान का आनन्दस्वरूप ही श्रीराधा के रूप में अभिव्यक्त है । श्यामाश्याम नित्य एक और अभिन्न है । श्री राधा जु श्रीकृष्ण की प्रेयसी -आराधिका - भक्ता - आराध्या -उपस्या है । श्रीराधा विश्वजननी , विश्वमयी , विश्वरूपा और विश्वातीता है । श्रीराधा योगमाया है , दैविमाया है , निजमाया है । श्री राधा श्रीकृष्ण की आत्मा और शक्ति है । वह सबकी आराध्या , अनिवर्चनीय , अचिन्त्य है ।
योँ व्रजठकुरानी श्रीराधमहारानी श्रीकृष्ण से सर्वथा अभिनस्वरूपा सच्चिदानन्दघनस्वरूपिणी , श्रीकृष्णात्मस्वरूपिणी ,श्रीकृष्णानुगामिनी , परमतत्त्वाभिरामिणी , स्वेच्छाविलासिनी , दिव्यह्लादिनी , परमपराशक्तिस्वरूपिणी , दिव्यलीलामयी , अखिलविश्वमोहनमोहिनी , नित्यरासेश्वरी , नित्यनिकुंजेश्वरी और श्रीकृष्णप्राणेश्वरी है ।
सामरहस्योपनिषद् में कहा गया है --
अनादिरयं पुरुष एक एवास्ति । तदेव रूपं द्विधा विधाय समाराधनतत्परोsभूत् । तस्मात् तां राधां रसिकानन्दां वेदविदो वदन्ति ।
- वह अनादि पुरुष एक ही है , पर अनादि काल से ही वह अपने को दो रूपों में बनाकर अपनी ही आराधना के लिये तत्पर है । इसलिये वेदज्ञ पुरुष श्रीराधा को रसिकानन्दरूपा बतलाते है ।
राधतापनी उपनिषद में आता है --
येयं राधा यश्च कृष्णो रसाब्धिर्देहश्चैकः क्रीडनार्थे द्विधाभूत ।
-- जो यें राधा और जो यें कृष्ण रस के सागर हैं वे एक ही हैं , पर खेल के लिये दो रूप बने हुये हैं ।
ब्रह्माण्डपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है --
राधा कृष्णात्मिका नित्यं कृष्णो राधात्मको ध्रुवम् ।
वृंदावनेश्वरी राधा राधैवाराध्यते मया ।।
-- राधा की आत्मा सदा मैं श्रीकृष्ण हूँ और मेरी (श्रीकृष्ण की) आत्मा निश्चय ही राधा है । श्री राधा वृंदावनेश्वरी है इस कारण मैं राधा की ही आराधना करता हूँ ।
यः कृष्ण सापि राधा च या राधा कृष्ण एव सः ।
एकं ज्योतिर्द्विधा भिन्नं राधमाध्वरूपकम् ।।
-- जो श्रीकृष्ण हैं , वहीँ श्रीराधा हैं और जो श्रीराधा हैं , वहीँ श्रीकृष्ण हैं , श्रीराधा-माधव के रूप में एक ही ज्योति दो प्रकार से प्रकट है ।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में भगवान के वचन --
आवयोर्बुद्धिभेदं च यः करोति नराधमः ।
तस्य वासः कालसूत्रे यावच्चन्द्रदिवाकरौ ।।
-- मुझमेँ (श्रीकृष्ण में) और तुम में (राधा में) जो अधम मनुष्य भेद मानता है , वह जब तक चन्द्रमा और सूर्य रहेंगे , तब तक कालसूत्र नामक नरक में रहेगा ।
देवीभागवत में आया है --
कृष्णप्राणाधिका देवी तदधीनो विभूर्यतः ।
रासेश्वरी तस्य नित्यं तया हीनो न तिष्ठति ।।
-- श्रीराधाजी श्रीकृष्ण को प्राणों से बढ़कर हैं, कारण , श्रीकृष्ण राधा के अधीन हैं । रासेश्वरी राधा नित्य उनके समीप रहती हैं , उनके बिना श्रीकृष्ण रह ही नहीँ सकते ।
पद्म पुराण में नारद से श्रीकृष्ण कहते है --
दाहशक्तिर्यथा वह्नेस्तथैषा मम वल्लभा ।
अनया सह विच्छेदं क्षणमात्रं न विद्यते ।।
-- अग्नि में जैसे दाहिक शक्ति है, वैसे ही मेरी प्रियतमा श्रीराधा हैं , उनके साथ क्षणमात्र के लिये मेरा विछोह नहीँ होता ।
स्कन्द पुराण में आत्माराम का अर्थ
आत्मा तु राधिका तस्य तयैव रमणादसौ ।
आत्माराम इति प्रोक्तो मुनिभिर्गूढवेदिभिः ।।
-- श्री राधिका भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा हैं, उनमें सदा रमण करने के कारण ही रहस्यरस के मर्मज्ञ ज्ञानी पुरुष श्रीकृष्ण "आत्माराम" कहते हैं ।
इसी प्रसङ्ग में महिषी श्रीकालिंदीजी कहती है --
आत्मारामस्य कृष्णस्य ध्रुवमात्मास्ति राधिका ।
-- आत्माराम भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा निश्चय ही राधिका जी है ।
और एक सुंदर भाव --
प्रेयांस्तेsहं त्वमपि च मम प्रेयसिति प्रवाद-
स्त्वं मे प्राणा अहमपि तवास्मीति हन्तः प्रलापः ।
त्वं में ते स्यामहमिति च यत् तच्च नो साधु राधे
व्याहारे नौ नहि समुचितो युष्मदस्मत्प्रयोगः ।।
--- मैं प्रियतम् हूँ और तू मेरी प्रियतमा है , योँ कहना केवल किंवदन्तिमात्र है ।
तू मेरे प्राण है और मैं तेरे प्राण हूँ , यह कहना भी प्रलाप ही करना है ।
तू मेरी और मैं तेरा हूँ , यह भी कोई साधु(शुद्ध) प्रयोग नहीँ हैं ।
हम दोनों में कभी तू और मैं का किसी प्रकार भी कोई भेद सूचित हो, यह उचित नहीँ हैं अर्थात् तू मैं हूँ और मैं तू है हम दोनों में कभी कोई भेद है ही नहीँ ।
--- सत्यजीत तृषित । श्रीराधे ।।
whatsapp no. 089 55 878930 ।। जयजय श्यामाश्याम ।।
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