🌸श्रीराधे वृषभानु दुलार🌸
श्री वृषभानुनन्दिनी राधिका जी रूप रस एवं प्रेमसुधा की निधि स्वरूपा हैं।
ह्लादिनी-शक्ति (आनन्द ब्रह्म की सारभूता शक्ति) परमसुख की खान हैं।उस ह्लादिनी शक्ति के सार को ही महापुरूषों ने प्रेम कहा है।उसी प्रेम की सारभूता शक्ति ठकुरानी राधिका हैं।
उनको महाभाव स्वरूपिणीं भी कहते हैं।
छवि निधि रस निधि प्रेमसुधा निधि,राधे श्रीवृषभानु दुलार।
ह्लादिनी शक्ति परम सुख खानी।
ताको सारहिं प्रेम बखानी।
प्रेम-सार राधा ठकुरानी।
महाभाव रूपिणि जु नवेली,अलबेली सरकार।
श्री राधिका जी के सिर पर मणियों से जटित मुकुट सुशोभित हो रहा है एवं मनोहर चंद्रिका बरवस मन को मोहित करने वाली है।उस चंद्रिका के ऊपर मोतियों की लडें अत्यन्त शोभा देती हैं।फूलों से सजाई हुई बेणीं के बाल अत्यन्त ही काले,घने एवं घुंघराले हैं।
मणिमय कनक-मुकुट सिर सोहै।
चारू-चंद्रिका छवि मन मोहै।
टापर लर वर मुक्तन को है।
कारी अनियारी घुँघरारी,वेणी कुसुम सँवार।
कानों में मकराकृत मनोहर झुमके झूम रहे हैं एवं उनकी प्यारी भौहों को देखकर कामदेव का धनुष भी लज्जित हो रहा है।उनकी आँखें अमृत, विष एवं मदिरा के गुणों से युक्त हैं।अंजन से युक्त वे आँखें खंजन, हिरन तथा चकोर के अभिमान को भी चूर्ण करने वाली हैं तथा रसिकों को आनन्द देने वाली हैं।
श्रुति-ताटंक मकर मन हारी।
लजत काम-धनु लखि भौं प्यारी।
सुधा गरल मधुमय दृग वारी।
खंजन मृग चकोर मद गंजन,अंजन मन रिझवार।
उनकी नासिका पर झलमलाता हुआ मुक्ताहल सुशोभित हो रहा है।उनके सुन्दर मुख की शोभा मंद मधुर मुस्कान से और भी बढ. गई है।उनके मुख रूपी गृह में मानो दाँत रूपी अनेक चन्द्रमा निवास करते हैं। उनके हाथों में चूडी कर पत्र(पतरा) एवं अँगुलियों में मनोहर अँगूठियाँ शोभा दे रही हैं।
झलमलात मुक्ताहल नासा।
मदन विकास मंजु मधु हासा।
वदन सदन विधु रदनन वासा।
कर चूरी करपत्र मूँदरिन, अँगुरिन सुघर सँवार।
उनके वक्षःस्थल पर अति सुन्दर रंग की चोली अलंकृत है।गले में विविध प्रकार के रंग वाले मणियों एवं मोतियों के हार सुशोभित हो रहे हैं।गहरे तालाब की तरह नाभि है एवं पेट में तीन वलियां पडी हुई हैं।कमर पतली है,कमर का निचला भाग मोटा है,नीलाम्बर पहिने हुए हैं।
उनकी चुनरी में जरी के काम की किनारी लगी हुई है।
कंचुकि उर विलसति नव रंगी।
हार मणिन मोतिन बहुरंगी।
त्रिवलि नाभि सर कटि तन्वंगी।
पृथु-नितम्ब, परिधान नीलपट, चूनरि जरिन किनार।
उनके पैरों में अनेक प्रकार के रत्नों से जटित पायल शोभा दे रही है।इनकी चाल राजहंसो के मन को मोहित करने वाली हैं तथा जिसको देखकर सैंकडाें कामदेव एवं चन्द्रमा लज्जित हो रहे हैं।
रतन जटित पग पायल सोहिनि।
चाल मरालन को मन मोहिनि।
लखि लाजत शत रति-पति रोहिनि।
आयो देखि 'कृपालु' दीन को, आदर येहि दरबार।
'श्रीकृपालु जी' कहते हैं कि ऐसी रूप श्रृंगार रस सुधा माधुरी वृषभानुनन्दिनी के दरबार में शरणागत् दीनों का सदा ही आदर होता है, ऐसा मैं अनुभव कर के आया हूँ।
(जगद्गुरू श्री कृपालु महाराज जी की जय।राधारानी की जय)
🌺👏👏👏🌸👏👏👏 shreeji gau sewa samiti......
Comments
Post a Comment