शिथिल किञ्चित् भीतर स्पंदन
मुग्ध अधरा व्याकुल अवचेतन
क्षुब्ध धरा पर नव नित्य चिंतन
गहर गर्भन्तर निरन्तर मनन
विशुब्ध विशुद्ध स्मरब्ध दर्शन
बिन्द-अरविन्द-हरेन्द पद-अवलोकन
"तृषित" शिरोमणी रसय वदन
विश्व बिसर हिय पखार तव चरण
भावित भाव विनय-विनय भिलाषण
सत्यजीत"तृषित"
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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