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सलोनी भाव । कितनी बार मधुर गीतों ने साजन तुम्हें पुकारा

कितनी बार मधुर गीतों ने साजन तुम्हें पुकारा
कितनी बार भरी आँखों ने तेरा पंथ निहारा
कितनी बार स्वप्न संगम का मन में भाव उखारा
किन्तु सखे तेरे नयन कोर से हुआ न एक इशारा
कितनी बार मूक आहों ने तुम्हें किए इशारे
धीरे धीरे सब जग बदला बदले न भाग्य हमारे
आ जाओ मेरे रमण बिहारी आ जाओ गिरधारी आ जाओ बनवारी
आ जाओ रस पूरित सावन
तेरी 'प्रीति' पड़ी अधूरी
सब व्यवधान समेट लो मनहर
नेक रखो न दूरी
तू मुझ में समा जा इस तरह
तन प्राण का जो तौर है
जो देखे समझे नहीं
मैं और हूँ तू और है
आ जाओ
हे मेरे प्रियतम हे अंतस स्थित मरम
ले आवो स्थित मिलन की भोर
प्रिय तुम बिन सूना है सब और
इस विरह निशा में ओ मेरे मधुकर
ज्योति तुम बन आओ
प्राणों की पीड़ा को हर लो
हे सुरभित यौवन आओ
आ जाओ
मेरे जीवन के दीप
हे सुख संगीत
तेरे कर है जीवन की डोर
आ जाओ
अब सुन लो करूण पुकार
प्रिय आ जाओ इक बार
मेरी प्रीत के परम आधार
प्रिय आ जाओ इक बार

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