होली की नोंकझोंक
यशोदा से रो रो के कर रहीं
शिकायत मिल गोपी सारी
कान्हा ने मारी पिचकारी
मैया देख हमारी भीगी साड़ी।
तन से ऐसी चिपक गई
हम तो मर गई शर्म की मारी
कान्हा खड़ौ खड़ौ मुस्कावै
ग्वाला हंस रहे दे दे तारी।
कान्हा बोले मैया सुन ले
मैं सच्ची बात कहूँ सारी
मेरी नैकहुँ गलती ना है
ये झूंठ बोल रहीं मिलकें सारी।
सारे ग्वाला खेल रहे थे
आपस में होली रंग वारी
हमें घेर कें इन गोपीओं ने
छीन लईं हमसे पिचकारी।
हमसे रंग भी छीन लिएऔर
भर लीनी सारी पिचकारी
फिर आपस में ये होली खेलीं
ऐक दूजी की रंग दई सारी।
हमरौ नाम लगाइ रहीं झूठौ
समझ के हमको निपट अनाड़ी
ये सब बहुत सतावें मोहे
गोलबंद हो देती गाली।
दोनों ओर की बातें सुनकर
मैया मन ही मन मुस्काई
दोनों की चालाकी समझी
और दोनों को डांट लगाई।
जो कान्हां तू बाज न आयौ
होगी तेरी बहुत पिटाई
गोपियो तुम घर जाओ अपने
होली तुमने खूब मनाई।
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