ताम्बूलामृत
श्रीप्रिया जु ने स्वयं ताम्बूल को प्रियतम् हेतु बनाया , ताम्बूल प्रेम का ही प्रतीक है , वह रस वर्धन करता है । श्री जी सदा प्रियतम् हेतु प्रेममय ताम्बूल धारण किये सभी प्रेमी जन दर्शन किये ही है , वह प्रेम ही है , मुर्त प्रेम ,
यह बड़ी ही दिव्य सुगन्ध और रस वर्धन दिव्य भावों से बना है । श्री प्रिया बड़ी ही सावधानी से उसे तैयार करती है ।और इसमें नित्य उनके भाव सागर के दिव्य अतृप्त प्रेम के कारण विशेष अति विशेष रस स्वतः हो जाता है । प्रियतम् को नित् लगता है जैसे आज ही ताम्बूल पाया हो।
एक बार लाडिली जु ने नाना रस पवा कर उन्हें पान आगे किया । वह सदा की तरह प्रिया और पान को निहारे , फिर प्रिया को मुस्कुरा कर देखने लगे , वह संकोच से हाथ में दे रही थी । प्रियतम् के देखने से वह शर्मा गई
फिर प्रियतम ने नेत्र प्रिया के नेत्रों से लगा कर मुख खोल दिया , श्री किशोरी जु तो भाव मय हो और संकुचित और स्पंदित होने लगी
बड़े भय से उन्होंने प्रियतम के मुख कमल में पान धरा , इस में उनकी अंगुलियां प्रियतम् अधर छु कर और तीव्र भाव आवेश से सम्पूर्ण शरीर को रोमांचित कर गई
प्रियतम् को पूर्ण ताम्बूल पवा वह उनके ताम्बूल के लालिम में रचे अधर नयन झुका कर भी छिप छीप कर निहारने लगी ।
फिर प्रियतम् को ध्यान हुआ , वह पूरा ताम्बूल पा रहे है , रस मगन हो वह किशोरी जु को भूल गए
प्रियतम् ने ताम्बूल मय मुख से कहा तुमने तो पाया ही नहीँ
लाडिली जु ने प्रेममय मुस्कराहट से हाथ आगे कर दिया , नयन झुकाये रखे और संकोच गहराने लगा
प्रियतम् ने पुनः कह पाने में असमर्थ हो कर कहा , ऐसे ???
ऐसे पाओगी आप।।
किशोरी जु ने कहा फिर जैसा आप चाहे
प्रियतम् ने श्री किशोरी जु के अधर की और दृष्टि लगा दी , वह समझ गई । और अति व्याकुलित , व्यथित सी सहम सी गई
पुनः वह कहते है , मुझे अमनिया ही पवा दिया , देखो यह कसेरा है ,
यह सुन लाडिली व्याकुल हो गई । और स्वयं जो सहम सी गई थी अधर से अधरामृत रंजित ताम्बूल पान करने लगी । ताम्बूल पान छुट गया और अधरामृत पान होने लगा , यह सब दर्शन सखी कर रही थी ।
भावमय झाँकि पा कर वह गदगद हो गई । सखी ने देखा , कि ताम्बूल कितना धनी है , उसने एक समय युगल अधर रस का संयोजन पीया
सखी कुछ क्षण ताम्बूल के सुख से व्याकुल हुई । फिर किशोरी जु जब प्रियतम् से अपने भाग का पान आरोग् पुनः हटी कि उनकी दृष्टि सखी पर गई और वह शर्मा गई।
किशोरी जु के आगे सखी ने कर बढ़ा दिया
किशोरी जु ने उसके कर में नहीँ मुख में अपने कर से प्रेम के कोर गिरा दिए । युगल अधर रस पी चुके , दिव्य ताम्बूल को पा कर सखी धन्य हो गई ।
प्रियतम् के अधर से श्रेष्ट को रस नहीँ , और प्रियतम के लिए भी प्रिया अधर रस से श्रेष्ट कुछ हो यह वह नहीँ जानते , अपितु वह अधर रस को ही अपनी पूर्ण रस मदपय मानते है । और वह ताम्बूल युगल अधरामृत मुख मण्डल के प्रेम का प्रसाद नहीँ , साक्षात् सर्वोत्तम पुरस्कार ही है -- सत्यजीत तृषित ।।।
सब रसन को सार पायो ब्रजनंदन तेरे चरणन में
चरणन रस सूं अति गहन सघन रस पायो मदनमोहन तेरे अधरन में
तव अधरन में रस आयो रसिका स्यामा अधरन से
द्वय सुविकसित कुमल नीरद दल लिपटन सु
अती गूढ़ गहन मिलन रस प्रीतसोरभ चहु और छायो
किशोरी ते पाये मदमिलित सुंगधित कनिकन में
--- सत्यजीत तृषित ।।।
waah,,, priya ju ki preeti parsadi adbhut aanand
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