Skip to main content

उनकी प्रीती कैसे पाऊं?? ‌‌_____

उउनकी प्रीती कैसे पाऊं?? ‌‌___________श्री राधा विजयते नमः
.
.
मैं जप करुंगी तो उनकी स्मृति मिल जायेगी,
ध्यान करुंगी तो उनका रुप मेरे हृदय में आ जायेगा,
तप करुंगी तो उनका वैभव मिल जायेगा,
त्याग से यश मिल जायेगा,
समाधि से अखंड शांति प्राप्त हो जायेगी,
ज्ञान से एकत्व, सत्य से उनकी सत्ता प्राप्त हो जायेगी,
परंतु प्रीती तो नही हि प्राप्त होगी री,,

अरी बहन ! तुम मेरा श्रृंगार करके मुझे रुपवती बना दोगी तो उनकी कामुकता मुझे मिल जायेगी !
नृत्य ,गान सुंदर स्वभाव एवं गुणो से उनकी क्षणिक रुचि आकर्षित कर लूंगी, परंतु उनका प्रेम कदापि नही मिलेगा री!

वात्सल्य से पुत्रत्व, सख्य से बंधुत्व, दास्य से स्वामित्व, प्रणय से पत्नीत्व मिल सकता है, परंतु प्रेम नहीं मिल सकता री !

भक्ति से तू उनका कृपा अनुग्रह, उपासना से उनका नैक्टय, सेवा से वे तेरे ऋणी हो जायेगे परंतु प्रेम तुझे नहीं मिलेगा री !

समर्पण से वे तेरे अभिभावक हो जायेगे, आज्ञापालन से संकोचहीनता, विनय से आशीर्वाद, स्तुति से वरदान, शिष्यत्व से से उपदेश भले ही प्राप्त हो जाये, इन साधनो से तुझे उनका प्रेम नही प्राप्त हो सकता, मै तो मात्र प्रीती चाहती हूं री !

प्रीती तो मात्र अपनत्व से ही प्राप्त होती है ! साधन तो पराये की विक्रय राशि है, उसका तो आधार ही पराया भाव है !

प्रेम इतनी दुर्लभ वस्तु है साधना के मोल मे नही मिलता !!!

जय श्री राधे______श्री राधा विजयते नमः
.
.
मैं जप करुंगी तो उनकी स्मृति मिल जायेगी,
ध्यान करुंगी तो उनका रुप मेरे हृदय में आ जायेगा,
तप करुंगी तो उनका वैभव मिल जायेगा,
त्याग से यश मिल जायेगा,
समाधि से अखंड शांति प्राप्त हो जायेगी,
ज्ञान से एकत्व, सत्य से उनकी सत्ता प्राप्त हो जायेगी,
परंतु प्रीती तो नही हि प्राप्त होगी री,,

अरी बहन ! तुम मेरा श्रृंगार करके मुझे रुपवती बना दोगी तो उनकी कामुकता मुझे मिल जायेगी !
नृत्य ,गान सुंदर स्वभाव एवं गुणो से उनकी क्षणिक रुचि आकर्षित कर लूंगी, परंतु उनका प्रेम कदापि नही मिलेगा री!

वात्सल्य से पुत्रत्व, सख्य से बंधुत्व, दास्य से स्वामित्व, प्रणय से पत्नीत्व मिल सकता है, परंतु प्रेम नहीं मिल सकता री !

भक्ति से तू उनका कृपा अनुग्रह, उपासना से उनका नैक्टय, सेवा से वे तेरे ऋणी हो जायेगे परंतु प्रेम तुझे नहीं मिलेगा री !

समर्पण से वे तेरे अभिभावक हो जायेगे, आज्ञापालन से संकोचहीनता, विनय से आशीर्वाद, स्तुति से वरदान, शिष्यत्व से से उपदेश भले ही प्राप्त हो जाये, इन साधनो से तुझे उनका प्रेम नही प्राप्त हो सकता, मै तो मात्र प्रीती चाहती हूं री !

प्रीती तो मात्र अपनत्व से ही प्राप्त होती है ! साधन तो पराये की विक्रय राशि है, उसका तो आधार ही पराया भाव है !

प्रेम इतनी दुर्लभ वस्तु है साधना के मोल मे नही मिलता !!!

जय श्री राधे

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...