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कहते है , तृषित भाव

कहते है ---
ना , ना
बिल्कुल ना ।
कुछ ना कहो ।
ना कहो मैं प्रेमी हूँ
ना कहो मुझे प्रेम है
सब से ।
ना कहो इन्हें कि एक
बार मुझे आलिंगन ही कर
लेना है
तुम कहोगे तो इनकी मंशा टूटेगी
मेरी नहीँ इनकी होने दो
यह आते और लौट जाते है
यह बहुत है
कहीँ यह ना आये तो ,
मैं खुश हूँ , यह खुश है
बस वह मत कहना
मैंने क्यों कहा तुमसे , नहीँ जानता
शायद बह गया
अब तुम ना कहना
मैंने झूठ कहा था कोई मुझे नहीँ चाहता
तुम भूल जाओ उसे , वह झूठ है
देखो सब मुझे चाहते है
यह धरती , पवन , नदियां , पर्वत
देखो यह पंछी यह तो मेरे लिये ही गाते है
देखो यह लता , यह वन
सब रंग भर झूम रहे है न
मेरे ही लिए , यह मुझे चाहते है न ।
कहो सब चाहते है न ......

......और ....  मानव ?
क्या वह भी आपसे प्रेम करते है ?
... ... ...
... ... ...
कहिये ???

बस ! बोलो नहीँ
सब आ गए , जाओ ।
व्यर्थ बात करते हो सदा
मुझे कुछ ना कहना था तुमसे
तुम सब भूल गए यह भी भूल जाओ
क्या अब आप मुझे श्राप दे सकते हो
नहीँ ना ।।।
तो भूलूँ कैसे ?
असम्भव है ।।।
आशिष दे जो भूलना था
भुला डाला ।
अगर श्राप दे सकते तो
यह भूल ही जाता ।

कहना नहीँ यह
किसी से  मुझे पीड़ा होती
जब भगवान होना हो
कोई ना सुनेगा तुम्हारी ,
मत कहना ।
मुझे रहने दो जो हूँ
तुम जाओ ,
और यूँ ठगना हो
तो मत आया करो ।।।

जाऊँ ???
तुम्हारी सारी साजिश तुम तक
लाने को है
क्या तुम लौटाना जानते हो ?
नहीँ होगा तुमसे
अब कहाँ जाना
संग बिन रह पाते हो ,
लाल पिले हो उठते हो ।
मैं लौट भी जाऊँ
पर तुमसे ना होगा --
--- सत्यजीत तृषित

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