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तृषित होली भाव

लें गुलाल कर में ज्यूँ ही
प्रियतम् ने उठाई कलाई
पहले तो माँग ही सजाई
फिर कपोलन पे धरी कलाई
छूवत गौरांगी श्याम सुध गवाईं
मोहन ने जब प्रिया से नैन न हटाई
सखियों ने दी बलईंया , नैन झर आईं
सरोवर ही किया रंग लाल तब
अति मधुर विचित्र सुगन्ध भी मिलाईं
भर पिचकारी , भर चरियाँ -झरियाँ
बहु बहु युगल पर बरसाईं
निहारते रहे प्रियतम् प्रिया को
और गुलाल लगाने को कलाईं लगाईं
फिर भीगत रंग बहु विधि
श्यामसुन्दर पुनि सुध ना लौट तब आईं
सो सखी ऐसो रंग लगायो
कर फिर हटे ना हटायो
"तृषित"

अष्ट सखी कुँजन बहु विधि फाग उमंग हुयो
नित नव सखी कुँज रंग राग फाग भयो
दाऊ की पिचकारी मईया सूं लाल
रोय बिलख बिलख मांग के लायो
श्यामा दीनी पिचकारी रत्नमयी
भर भर मोहे रंग लियो रसिली
निज कसुमल कुमल विमल प्रीत रंग
ऐसो विनय कर पद कंज मकरन्द
श्यामभ्रमर रस पिबन लाग्यो
सखियन भरी सब पिचकारी
लाडिली उठाई नव प्रियतम् पिचकारी
सब सखी संग भर भर गिराई
प्रियतम् भ्रमर चिपक्यो पद कंजन सु
चुम्बत चुम्बत लाडिली पद मकरन्द
श्याम भ्रमर भीगत पूरण मेघ बरसत
बरसत मेघ सम भ्रमर सुकुसुम रस ही भायो
सखी , हारी सब सखियन मुस्काय रही श्यामा
तनिक भी प्यासो कारो भ्रमर हिलावे
हिल्यो
तृप्ति सुधा रस पिबत पिबत
मदमय रूप सुधा प्यास बढायो ।।
"तृषित"

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