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नित्य मिलन वह नहीँ जहाँ तुम हो भाव


नित्य मिलन
कैसा नित्य मिलन
प्रीति और प्रेमास्पद का
हाँ वह तो नित्य है ,
नित्य मिलन है , वह
पर तुमने जो देखा क्या वह नित्य मिलन था ,
तुम जो देखना चाहते हो क्या वह नित्य मिलन है ,
तुम जो अभी देख रहे हो क्या वह नित्य मिलन है ,
नहीँ , नित्य मिलन वह नहीँ जिसे देखा जा सकें
नित्य मिलन वह है ,
जहाँ प्रीति हो प्रेमास्पद हो ,
तुम भी नहीँ ।
तुम वहाँ हुए कि वह नित्य मिलन
और किसी सृष्टि में होने लगेगा ।
ऐसा न होगा कि वह बिखर जायेगा
नहीँ वह गौण हो जाएगा ।
किन्हीं और गहरी रस की धाराओं में वह है , सदा है , कथन भर को नहीँ
सदा है
जब भी है , जब तुमने कहा
प्रीति प्रियतम् से रूठ गई
जो तुम देख सकते हो वह नित्य मिलन नहीँ
जो नित्य मिलन है वह तुम नहीँ
कभी नहीँ
तुम हो , वह विरह है
प्रीति और प्रेमास्पद का
क्योंकि तुम नित्य मिलन नहीँ देख रहे ।
वह नित्य मिलन में है
बस तुम मत देखना
हाँ तुम उसे पी सकते हो
वह रस है
तुम उसमें उतर भी सकते हो
वह अनुभूति-अमृतसर है
--सत्यजीत तृषित

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