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मन्दिर उनका प्रतीक्षालय तृषित भाव

मैं आज फिर लौट आयी मन्दिर से
और वह वहीँ है
मैंने कहा मुझे ईश्क है ,
उसने कहा नहीँ  ,
मैंने सुना वह देता है ,
मांग कर देखा ,
उसने फिर भी कुछ चाहा नहीँ
जब मैं मन्दिर गई
या कहू प्रियतम से मिलने
तब वह मुझे देख रहे थे
मैंने सब और देखा
रंग बिरंगे लोग , 
सब को ,
देखा कही यहाँ कोई
जानता तो नहीँ ना ,
कोई नहीँ मिला तब
उन्हें देखा,
बहुत सुंदर ।
पर मैंने नैन मूँद लिए
क्यों ? यह नहीँ पता
पलकों को जबरन बन्द
कर लिया ।
नैन खोले
क्योंकि संग लाई सेवा
देनी थी ,
नैन खोल वहाँ
अपनी पहचान के
पुजारी जी खोजे
वह ना मिले ,
बाहर गई ,
वहाँ जहाँ सब बैठ कर
बात करते है उस कमरे में
उन्हें वह सब दिया ।
मैं फिर आई ,
मेरी लाइ माला पुजारी जी ने
पहना दी ,
मैंने फिर भी माला को देखा
अब सुंदर लगे मुझे ।
माला को थोड़ी देर देखा
आँख बन्द कर ली
ढोक लगा दी , खड़ी हुई
देखा वह अब भी मुझे देख
रहे थे ।
बाहर निकलने और पहुँचने में
बहुत लोग मिले ,
सबको पता था ,
मुझे उनसे प्रेम है , सो बात की
घर आ गई ।
अब ख्याल आया ,,
क्या मुझे प्रेम है ,
अगर मुझे मिलना ही था
तो मिली क्यों नहीँ ?
मैंने पल भर देखा भी नहीँ
क्या मुझे प्रेम है ,
या उन्हें वह देख रहे थे ,
ओह , जब नैन मूँद लिए
तब कहे भी , देखो ना मुझे ।
मैंने सुन कर ना सूना ,
शायद उन्हें बात करनी थी
पर मैंने बहुतों से बात की
उनसे नहीँ की
बातों में ही लगा था समय
उन्हें तो कुछ पल भी ना देखा
क्या मैंने उन्हें माना सच में ?
नहीँ , नहीँ , माना ।
माना होता तो मेरी धडकन तेज़ होती
आँखें रूकती नहीँ
नज़र हटती नहीँ
सच ही मान लेती तो
लौटती क्यों ?
वह सच में यही है यह
जान उन्हें बस उन्हें निहारती
वहीँ ठहर जाती ,
मैं ना ठहरी , लौट आई
क्योंकि कहना था सब से
मुझे इनसे प्रेम है ।
प्रेम तो उन्हें है जो अब भी
वहाँ खड़े है ,
ना जाने कब मैं पहुँच जाऊँ
जब से जागती हूँ
उससे पहले वह तैयार होते है
जब तक थक सोने ना लगूँ
सोचते होंगे वह आ गई तो
सो खड़े है ,
पलक नहीँ झपकाते
कहीँ वह मुझे देखना खो ना दे
वह जानते है
मैं पलक भर जाती हू
पलक झपकी कहीँ लौट ना जाऊँ
क्या मैं प्रेमी हूँ ?
प्रेम ने तो उन्हें ठग लिया , वह ठहर गए
असम्भव है वह ठहरे ,
ज्ञानियों ने यह ठहरना हजम ना किया
बहिष्कार कर दिया ,
पर प्रेम में वह ठहर गए , मुर्त हो गए खो गए ,
और मुझे लगा मैंने प्रेम किया
उन्होंने नहीँ ?
प्रेमी वह है तो प्रतीक्षा करें
कौन किसकी कितनी प्रतीक्षा कर रहा है ,
यह कौन जाने समझे ,
क्या यह मन्दिर उनका प्रतीक्षालय है जहाँ वह बेताबी से खड़े है
अपनों के लिए ....
--- सत्यजीत तृषित ।।।

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