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यह तुमने क्यों किया तृषित

यें तुमने क्यों किया
तुम बोलते
गाते
नाचते
देखते
छूते
क्या क्या ना करते
और मैं बूत बन जाती
एक टक
तुम्हे निहारती
तुम्हे देख मेरी मुस्कुराहट
अटक जाती
बस देखती सदा तुम्हें
सुनती सदा तुम्हें
कहती नहीँ कुछ
बस सुनती ,
बस सुन सकती ।।।

यह मैंने सोचा भर
और तुमने इसे भी
जी लिया ,

ईश्क में कितनी आसानी से
हकीकत फ़साना हो गई
और फ़साना फ़क़त हकीकत हो उठी

पत्थर मैं हूँ
पर सबको दीखते तुम हो
यें चलते फिरते
हर हरकत को जीते तुम हो
पर दीखता इन्हें कोई और है
----  सत्यजीत तृषित

ईश्क तो उसने किया
जो खो गया ।
ईश्क उसने किया जो
मुर्त हो गया ।

ग़र सच में चाहत है
बूत हो जाओ
वह फिर बोल पड़ेगा
तुम खो जाओ
वह जी उठेगा
देखना है , उसे सच
तो पत्थर नहीँ
महबूब को ही देखो
और देखते देखते
पत्थर हो जाओ
फिर यह पत्थर
उसे हिलते देखेगा
और पत्थर से थम
जाने से उसकी प्रीत रस
बह निकलेगा ।
तुम चाहते हो वह बोले
तब तुम नहीँ बोलो
बस सुनो
सुनो
.... सूना उसने कुछ कहा
उसने ही सब कहा , सुनो !!
सुनो
सुनो
-- सत्यजीत तृषित

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