भगवान श्रीकृष्ण के विवाह के सम्बन्ध में लोगो को गलतफहमिया है कि जब भगवान ने इतने सारे विवाह किये.तो हम क्यों नहीं कर सकते. भगवान ने तो कालिया को भी नाथा था, अग्नि पान भी किया. पूतना,त्रिणार्वत,अघासुर,आदि को भी मारा. गोवर्धन पर्वत सात दिन तक उठाया. बाकि सब लीलाओ को भी करके बताये कोई. भगवान ने उन राजकुमारियो से विवाह काम वश नहीं किया. कृपा करके किया. क्योकि उनका कोई नहीं था, वे राक्षस के पास रह रही थी इससे उनसे कोई विवाह नहीं करता, इसलिए भगवान ने उन पर कृपा करके विवाह किया.
भगवान की आठ पटरानियाँ थी - जिनमे रुक्मिणी सबसे बड़ी थी इसी प्रकार सत्यभामा, जाम्बवती, कालिन्दी, मित्रविन्दा, सत्या, भद्रा, लक्ष्मणा, और सोलह हजार एक सौ रानिया थी. सभी मिलाकर‘सोलह हजार एक सौ आठ’ थी.
सत्राजित भगवान सूर्ये के बहुत बड़े भक्त थे. सूर्येदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें एक ‘स्यमन्तक मणि’दी थी.जो प्रतिदिन आठ भार (एक सौ साठ तोला) सोना देती थी. जब सत्राजित द्वारिका आये तो सबने उनसे कहा ये मणि तुम श्रीकृष्ण को दे दो, पर उसने मना कर दिया. एक दिन उसका भाई प्रसेन उस मणि को गले में धारण करके शिकार खेलने गया वहाँ सिहं ने उसे मार दिया. उसके पंजे में वह मणि फंस गयी. वह गुफा में प्रवेश कर ही रहा था, कि मणि के लिए ऋक्षराज जाम्बवान ने उसे मार डाला. उन्होंने मणि अपनी बेटी को खेलने के लिए दे दी.
अपने भाई प्रसेन के न लौटने पर सत्राजित कहने लगा कि श्रीकृष्ण ने ही मेरे भाई को मार कर वह मणि ले ली है .जब भगवान को यह पता चला तो वे उसे खोजते खोजते गुफा में चले गए. फिर जाम्बवान और भगवान का युद्ध हुआ. और बाद में जाम्बवान ने भगवान को पहचान लिया कि ये तो मेरे प्रभु राम है. उन्होंने मणि और अपनी बेटी‘जाम्बवती’ को भगवान को दे दिया. इस प्रकार भगवान का विवाह जाम्बवती से हो गया. भगवन ने वह मणि सत्राजित को लौटा दी.
अब सत्राजित बड़े लज्जित हुए उन्होंने सोचा कि अब मेरे अपराध का मार्जन कैसे हो? मै कैसे भगवान को प्रसन्न करूँ. तब उन्होंने अपनी सुन्दर कन्या सत्यभामा और मणि दोनों भगवान को अर्पण कर दी. सत्यभामा शील-स्वभाव, सुन्दर, उदारता आदि गुणों से संपन्न थी.
भगवान ने सत्राजित से कहा- हम स्यमन्तक मणि न लेगे. हम तो केवल उसके फल के अर्थात उससे निकले हुए सोने के अधिकारी है. वही आप हमें दे दिया करे.इस प्रकार ‘सत्यभामा’ के साथ भगवान का पाणिग्रहण हुआ.
एक दिन जब भगवान हस्तिनापुर गए तो अर्जुन के साथ यमुना जी में हाथ पैर धोकर जल पी रहे थे तभी उन्होंने देखा कि एक परमसुन्दरी कन्या वहाँ तपस्या कर रही है अर्जुन ने उससे पूछा- ‘सुंदरी! तुम कौन हो? किसकी पुत्री हो? कहाँ से आई हो? और क्या करना चाहती हो? तुम अपनी सारी बात बतलाओ. कालिन्दी जी ने कहा – मै सूर्येदेव जी की पुत्री हूँ. मै सर्वश्रेष्ठ भगवान विष्णु को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूँ. इसलिए यह कठोर तपस्या कर रही हूँ. जब तक भगवान के दर्शन न होगे, तब तक मै यही रहूँगी. तब भगवान कालिन्दी जी को साथ लेकर द्वारिका आ गए. वहाँ आकर ‘कालिन्दी’ जी के साथ उनका पाणिग्रहण हुआ.
भगवान श्रीकृष्ण कि बुआ राजाधिदेवी की कन्या‘मित्रविन्दा’ को स्वयंवर से बलपूर्वक हर लाए उनके साथ पाणिग्रहण हुआ.
कोसलदेश के राजा नग्नजित की प्रतिज्ञा थी कि जो भी सात बैलो के नाक में नाथेल डालेगा उसी से अपनी पुत्री सत्या का विवाह करेगे.उन सातो बैलो को जीत कर भगवान का विवाह ‘सत्या’ से हुआ. भगवान श्री कृष्ण की बुआ श्रुतकीर्ति कैकय देश में ब्याही थी. उनकी कन्या ‘भद्रा’ के साथ भगवान का पाणिग्रहण हुआ. मद्रप्रदेश के राजा की एक कन्या थी ‘लक्ष्मणा’ जैसे गरुड़ ने स्वर्ग से अमृत का हरण किया था वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयंवर में अकेले ही उसे हर लिया.
भौमासुर नाम का एक दैत्य था जिसने वरुण का छत्र, माता अदिति के कुंडल और मेरुपर्वत पर स्थित, देवताओ का मणिपर्वत नाम का स्थान छीन लिया था. इसपर सबके राजा इंद्र द्वरिका में आये और उसकी एक-एक करतूत उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को सुनाई भगवान अपनी प्रिये पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर भौमासुर की राजधानी प्रागज्योतिषिपुर में गए.उसके नगर के चारो ओर पहाडो की किला बंदी थी. उसके बाद शस्त्रों का घेरा लगाया हुआ था. फिर जल से भरी खाई थी. मुर नामक दैत्य ने नगर के चारो ओर दस हजार, घोर और सुद्रढ़ फंदे बिछा रखे थे. भगवान ने अपनी गदा से पहाडो को तोड़-फोड डाला. और बाणो से छिन्ना-भिन्न कर दिया. भगवान के पचजन्य शंख की ध्वनि प्रलयकालीन बिजली की कड़क के समान महाभयानक थी.उसके सुनकर भौमासुर की नीद टूट गयी फिर उसका और भगवान का युद्ध हुआ अंत में भगवान ने उसका सिर कट दिया. फिर भगवान ने भौमासुर के संपन्न महल में प्रवेश किया वहाँ जाकर भगवान ने देखा कि भौमासुर ने बलपूर्वक राजाओ से ‘सोलह हजार एक सौ’ राजकुमारियो को छीनकर अपने यहाँ रख लिया है.
भगवान ने उन राजकुमारियो को आजाद कर दिया और उनसे कहा –‘आप सब अब आजाद हो, सभी अपने-अपने नगर जाओ. जब उन राजकुमारियो ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा, तो वे मोहित हो गयी. और उन्होंने मन-ही-मन भगवान को अपने प्रियतम पति के रूप में वरण कर लिया. इस प्रकार उन्होंने प्रेम भाव से अपना ह्रदय भगवान श्रीकृष्ण के प्रति निछावर कर दिया.
वे कहने लगी -प्रभु! अब हम कहाँ जाये क्योकि इस दैत्य के पास रहने के कारण हमारे माता-पिता स्वजन हमें स्वीकार नहीं करेगे. कोई हमसे विवाह नहीं करेगा. हमारे पास प्राण त्यागने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं है
तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन पर कृपा की और कहा- जिसका कोई नहीं उसका मै हूँ तुम सब मेरी शरण में हो. मै तुम सब से विवाह करूँगा. और भगवान ने राजकुमारियो को सुन्दर-सुन्दर, निर्मल, वस्त्राभूषण पहनाकर पालकियो से द्वारिका भेज दिया. फिर भगवान ने एक ही मुहूर्त में, अलग-अलग भवनों में, अलग-अलग रुप धारण करके, एक ही साथ, सब राजकुमारियो का शास्त्रोक्त विधि से पाणिग्रहण किया. सर्वशक्तिमान अविनाशी भगवान के लिए इसमें आश्चर्ये की कौन-सी बात है.
🌹🙌🏻 जय जय श्री राधे 🙌🏻🌹
(( Shreeji gau sewa samiti ))
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