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जीवन और तुम ! भाव

यह जीवन और तुम
क्या यह दो अलग धारा है

यह जीवन है
और तुम हो पर मौन हो

जिस पथ पर हृदय की आँख है
वहाँ तुम हो

और यहाँ तुम नहीँ
किस से करुँ बात तुम्हारी
ऐसा साथ ही नहीँ
किससे कहूँ
वह देखो
प्रियतम् की चपल ... ...

यह भीतर नदी है
जहाँ एक और सब है
पर तुम नहीँ दीखते

और एक और केवल तुम
और कुछ फिर देखना शेष नहीँ

यूँ बहना सरल है
उस और भी केवल तुम ही दिखो

जीवन और तुम
दो नहीँ
एक हो
अब तुम ही हो
हर रूप रंग
और तुम ही मुझे प्रिय हो
फिर तुम हो तो मुझे
केवल निहारना है
मुझे अब यह सब नहीँ
तुम दीखते हो ।
केवल तुम ।
पर तुम जिस रंग में हो
उसी रंग में स्वीकार हो
मेरे लिये व्यथित भी तुम
तुम्हारे लिये तृषित ही मैं

तुम कृष्ण हो
और तुम ही मेरे शेष
शेष अवशेष विशेष
धर लो कोई भी वेश
मेरे लिए तुम ही हो
मुझे बस मौन निहारना है
जैसे गौ आज भी तुम्हें देखती है
वैसे ही पाना है
सदा सर्वदा तुम

तुमसे ही नेह
तुमसे ही कलह
तुम्हारा ही स्पर्श
तुम्हारा ही सुख
तुम्हारा ही संग
तुम्हारी ही सेवा
तुम्हारी ही मैं तृषा
तुम्हारा ही तृषित यह जीवन
श्वांस प्रश्वांस तुम
जीवन मृत्यु और इनसे परे भी तुम
सिर्फ तुम । बस तुम । सर्व रूप तुम । सब तुम । तुम ही सब ।
--    तृषित
😭😭😭😭😭😭😭😭

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