श्री कृष्ण और कदम्ब का वृक्ष
समग्र मधुवन में श्री कृष्ण को कदम्ब का वृक्ष ही सर्वाधिक प्रिय है। अनगिनत भौतिक उपयोगिताओं से विशिष्ट यह वृक्ष बलराम शेषनाग स्कन्द के अति प्रिय मादक पेय 'कादम्बरी' के रस का दुर्लभ स्त्रोत है। श्री कृष्ण की क्रीड़ा स्थली का प्रिय अंग कदम्ब का वृक्ष केवल भौतिक दृष्टिकोण से ही नहीं, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से और अधिक विशिष्ट है।
एक ही डंठल पर अनेक पुष्पों का समूह, एक ब्रह्म से अनेक जीवात्माओं के अभिन्न सम्बन्धों को प्रकट करता है। ब्रह्म ने एक से अनेक होने की प्रक्रिया में जीवों के रूप में अपना विस्तार किया, इसी मूल एकता के भाव का प्रतीक है कदम्ब। मधु भरी सुगंध में सरोबोर आनन्दित श्री कृष्ण सभी को आनन्दमग्न कर देते हैं। इसीलिए वह माधव कहलाये।
व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'क' का अर्थ प्रजापति होता है- जो सृष्टि का सृजन करने के लिये उपस्त इन्द्रियों में निवास करतें हैं।इसी इन्द्री का दमन भी कर सकते हैं वह। अत: कदम्ब जितेन्द्र व तत्वज्ञान का भी प्रतीक है।
अर्थात
कृष्ण और कदम्ब का सम्बन्ध सामान्य नहीं, कदम्ब की छाँव में खड़े श्री कृष्ण इन्द्रियजीत हैं, सृष्टि के सर्जक हैं, जगत के पालक हैं। मानव अवतार में श्री राधा व गोपियों के साथ श्री कृष्ण का सम्बन्ध काम से परे है। कदम्ब का वृक्ष इन सब भावों को परिलक्षित करता है।
(संकलन.डाॅ मँजु गुप्ता)
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