राधे राधे
विश्व-वाटिका की प्रति क्यारी में क्यों नित फिरता माली
किसके लिये सुमन चुन-चुनकर सजा रहा सुन्दर डाली
क्या तू नहीं देखता इन सुमनोंमें उसका प्यारा रूप
जिसके लिये विविध विधिसे है हार गूँथता तू अपरूप
बीजांकुर शाखा-उपशाखा, क्यारी-कुञ्ज, लता-पा
कण-कणमें है भरी हुई उस मोहनकी मधुरी सा
कमलोंका कोमल पराग विकसित गुलाबकी यह लाली
सनी हुई है उससे सारे विश्व-बागकी हरियाली
मधुर हास्य उसका ही पाकर खिलतीं नित नव-नव कलियाँ
उसकी मञ्जु माता पाकर भ्रमर कर रहे रँगरलियाँ
पाकर सुस्वर कण्ठ उसीका विहग कूञ्जते चारों ओर
देख उसीको मेघरूपमें हर्षित होते चातक-मोर
हार गूँथकर कहाँ जायगा उसे ढूँढऩे तू माली
देख, इन्हीं सुमनोंके अंदर उसकी मूरति मतवाली
रूप-रन्ग, सौरभ-परागमें भरा उसीका प्यारा रूप
जिसके लिये इन्हें चुन-चुनकर हार गूँथता तू अपरूप।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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