विचार कीजिये ,
इसी पल युगल परिकर या वह लाडिलीलाल स्वयं खड़े हो , संग लें जाने को , इसी पल । तो क्या एक क्षण भी किसी अन्य वस्तु , व्यक्ति , कार्य का ख्याल उठेगा क्या चित् में ?
आइये आज एक सारिणी बनाइये , जिसमें सब से पहले स्थान पर लिखिये ,
1 , भगवत् प्रेम और मिलन
फिर शेष सभी दायित्व या कर्तव्य या अधिकार जो भी कहना चाहे वह , आवश्यक को ही लिखिए , पुरे जीवन के लिये , उससे एक भी कल कोई नई चाह ना हो , जितनी आवश्यक लगें सब लिख लीजिये । दूसरे नम्बर पर जीवन का वह कार्य को या वह चिंता जो सबसे अधिक व्यथित करती है , और वह आवश्यक भी लगती है । नित्य इस सारिणी का मनन करें , और नित्य कोई भी अनावश्यक लगें उसी समय काट दे , नया कुछ ना जोड़े , और काटे हुए को विचार से निकाल दें । शीघ्र भाव यह हो की लिस्ट में 1 ही काज शेष रहे नम्बर 1 का । शेष सब या पुरे हो जाएं या अनावश्यक समझ काट लीजिये ।
जब केवल 1 ही विषय शेष रहा भगवत् सम्बन्ध तब क्या अन्य कोई बाधा आई , आती है तो उसे शामिल ना कीजिये । अब विचारों , ख्यालों की दुकान बिक गई यह कह सब और हाथ जोड़ लीजिये ।
जल्दी कीजिये , जन्म के पहले दिन सी जरूरत शेष रहे , जीवन यूँ जिया जाये कि अभी आएं प्रियतम् के यहाँ से और
जल्दी कीजिये , आज ही मिलन है , जाना है , इस भाव से सब सुबह हो -- सत्यजीत तृषित ।।।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
Comments
Post a Comment