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वेदना सम्भालोगे । भाव

देखो तुम कुछ नहीँ करते
मेरा एक काम करोगे

बोलो करोगें या
हर बार की तरह सिर्फ खेलोगे

देखो तुम कुछ करते नहीँ
बस सताते ही हो
और यह काम तुम ही कर सकते हो
केवल तुम

पर नहीँ तुम्हें नहीँ देना
तुम मनमौजी ठेहरे ।
सब बिखेर दोगे ,
सब फैला कर मुस्कुरा दोगे

बोलो न ,
करोगे ना ।
ख्याल से करोगें न
ख्याल नहीँ करोगें न
देखो मान भी लो

सुनो तो ,
मेरी यह "वेदना" सम्भाल लो
इसमें तुम ही नित् जल भी दो
इसे पोषित करो
देखो , इससे खेलना नहीँ
और इसे बिखेरना नहीँ
यह सपने समझ फूँक से उड़ाना नहीँ
यह मेरा धन है ,
अब तुम सम्भाल लो ,
मुझसे नहीँ हो रहा ,
सब बह जाता है ,
यह वेदना खो जाती है
वह टिस चुभते चुभते
सुहानी हो जाती है ।

देखो यह वेदना एक औषधि है मेरी
तुम्हें मैं चाहिये हूँ तो इसे सम्भालो
और सदा की तरह नहीँ
इसे मेरी धरोहर समझ बढाओ
जितनी यह तुम खिला दोगे
मैं उतनी जी सकूँगी तुम्हें
यह वेदना और मैं दो नहीँ एक है
तुम इससे खेले तो वह मुझसे ही होगा

और हाँ , यह वेदना मेरी है
तुम्हारी नहीँ
इसका ख्याल रखना पर छुना नहीँ
इसमें जो पुष्प दीखते है वह कांटें है
पर प्रेम जिससे है उस के असर से
पुष्प सम ही है
इसे हृदय के करीब न लाना
बस अपने द्वार के कोने पर ऊगा लेना
और आते जाते कुछ सम्भाल लेना
भली भी लगे तो अपना ना कहना
यह मेरी है , मेरी वेदना
तुम्हारे लिए मेरी वेदना
जो मुझसे नहीँ संभलती
बोलो न सम्भालोगे न मेरी वेदना ,
यह यहाँ-वहाँ सुरक्षित नहीँ
सो तुम्हे कहा
तुमने सूना न ,
अब बोलो भी ,
सम्भालोगें न मेरी वेदना भी
जैसे मुझे ही सम्भालते हो तुम
मेरे प्रियतम् ।
-- सत्यजीत तृषित

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