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मथति दधि मथानि यशोदा ठाढ़े हरि पीठ सटि कै।

राधे राधे
मथति दधि मथानि यशोदा ठाढ़े हरि पीठ सटि कै।
हँसि-हँसि तोतरे बैन, दूमैं दंतुलि, दोऊ भुजा गल-कंठ गहि कै।
नोरै कबहुँ धौरे, लखि मैया दै दै ताली किलकारि कै।
वेगहिं घूमति मथानि,पकरत दधि-कण, मुँह वसन बदन छिटकै।
मुदित हँसत मैया को दैवत, अँगुरिया दधि-कण पकरि कै।
पुनि हँसत दमकत दंतुलि, शब्द लुप्त 'मँजु' लेखनी के।
बाल सुलभ कौतुक क्रीड़ा, त्रिलोकी प्रभु सुख पईहैं, भक्तनि सुख दईकै।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)

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