Skip to main content

श्री झाडूमण्डल

श्री जी कृपा

"श्री झाड़ूमण्डल"

स्थान - श्रीवृन्दावन का यह एक बहुत प्राचीन सिद्ध स्थान है जो श्रीश्रृंगारवट के पास उत्तर दिशा मे यमुना के किनारे अवस्थित है किन्तु अब इसे बहुत कम लोग जानते है.

श्रीरासोत्सव मे श्रीराधाजी का श्रृंगार करने के बाद रसिक शेखर उन्हें भी त्याग कर निकटवर्ती जिन झाड़ियों में जा छिपे थे, वही स्थान ही झाड़ू -मण्डल के नाम से विख्यात है.

स्थापना - श्रीबलरामदास जी बाबा ने इसी झाड़ू मण्डल स्थित एक जामुन के वृक्ष के नीचे बैठ कर भजन किया. वह वृक्ष अब भी विद्यमान है. उनकी भजन-गुफ़ा तथा उनके द्वारा प्रतििष्ठत श्रीविग्रह के दर्शन प्राप्त हैं.

श्रीमन्महाप्रभु श्रीकृष्ण चैतन्य की आज्ञा से श्रीश्रीरूप-सनातन, श्रीश्रीभूगर्भ-लोकनाथ गोस्वामी आदि गौड़ीय भक्तवृन्द श्रीवृन्दावन में आकर निवास करने लगे थे उस समय वृन्दावन एक निर्जन जंगल सा था. यमुना के किनारे इसी स्थान पर झाड़ीयों के बीच एक स्थान को नित्य झाड़ू -से नित्य झाड़ -बुहार कर सब गौड़ीय भक्तवृन्द गोष्ठी करते एवं श्रीश्रीराधाकृष्ण कथावार्ता किया करते थे. चारों ओर झाड़ीयों के रहने से, विशेषतः झाड़ू द्वारा झाड़ने बुहारने से सन्त समाज इसको झाड़ू मन्डल नाम से पुकारने लग गया .

यथा समय साधु लोग यहाँ झोंपड़ी बना कर भी रहने लगे. सिद्ध बाबा "श्रीकृष्णदास महाराज" के शिष्य हुए हैं सिद्ध बाबा "श्रीबलरामदास जी", जिन्होंने ४० वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की. संस्कृत का अध्ययन कर अपने हाथ से सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत लिख कर सिद्ध बाबा को भेंट की. उनकी कृपा से थोड़े ही समय मे सिद्धि प्राप्त कर ली.

श्रीबलरामदास जी बाबा ने इसी झाड़ू मण्डल स्थित एक जामुन के वृक्ष के नीचे बैठ कर भजन किया. वह वृक्ष अब भी विद्यमान है. उनकी भजन-गुफ़ा तथा उनके द्वारा प्रतििष्ठत श्रीविग्रह के दर्शन प्राप्त हैं.

सिद्ध बाबा श्रीबलरामदास जी में सदाचार और वैराग्य की पराकाष्ठा थी. स्त्री के साथ सम्भाषण तो क्या उसे देखने से भी भयभीत होते थे. अति वृद्धावस्था में भी श्रीराधारमण जी के दर्शन करने जाते तो आँखों पर पट्टी बाँधकर लाठी टेकते-टेकते जाया करते थे.

पूछने पर कहा करते -स्त्रियों  व विषयासक्त पुरूषों की मूर्ती से या चित्र से भी( चाहे काग़ज़ पर छपी हो या मिट्टी-पत्थर की बनी हो ) भजनशील विरक्त साधु को भयभीत होना चाहिए. साँप को देखने मात्र से भय लगता है,उसी प्रकार स्त्री एवं विषयासक्त पुरूषों की मूर्ती देखने से भी मन में क्षोभ उत्पन्न होता है.

झाड़ू मण्डल ऐसे सिद्ध बाबा की भजन स्थली है कि यदि गन्दे व्यापार से पैदा किये हुए धन से मन्दिर में श्रीठाकुर को भोग लगाया गया हो , उस ठाकुर प्रसाद में उनके देखते ही उसमें से ख़ून टपकने लग जाता था. उसे फिर बाबा फैंक दिया करते थे .

श्री हरिदास दुलारी
(( shreeji gau sewa samiti ))

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...