निश्चयात्मिका बुद्धि
कर्म, ज्ञान एवं भक्ति- इन त्रिविध बुद्धियोग में विशुद्ध भक्तियोग विषयिणी बुद्धि ही सर्वाेत्कृष्ट है। मुख्य भक्तियोग का लक्ष्य एकमात्र श्रीकृष्ण ही हैं। इससे केवल भगवत्सम्बन्धिनी बुद्धि ही एकान्तिकी अथवा अनन्या कहलाती है। ऐसी एकान्तिकी भक्ति के अनुष्ठाता साधक भक्त भोग और मोक्ष की कामना से रहित तथा निष्कपट होते हैं। इनकी बुद्धि भी निश्चयात्मिका होती है। वे सोचते हैं कि भजन में कोटि-कोटि विघ्न उपस्थित होते हों तो हों, प्राण जाये तो जाये, अपराध के कारण नरक में भी जाना पड़े तो कोई बात नहीं, परन्तु मैं भक्ति का परित्याग नहीं कर सकता। यदि स्वयं ब्रह्मा भी आदेश करें तो भी ज्ञान और कर्म को अंगीकार नहीं करूंगा। मैं किसी भी परिस्थिति में भक्ति का परित्याग नहीं कर सकता। ऐसी दृढ़ता का ही नाम निश्चयात्मिका बुद्धि है।
(श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर)
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