Skip to main content

ठकुराई और गोबर की टिक्की

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

शरणागति में इतना कमाल है ! गोपी कह रही हैं , " ये कन्हैया ! इधर आना । " चले जा रहे हैं सर्वेंट की तरह ।ये टोकरा उठा दे । टोकरा उठा दे । क्यों उठा दूँ  ? अरे ए ! उठा दे न , एक टोकरे पर एक लोदा मख्खन दूँगी । अच्छा ? देगी न ? हाँ दूँगी । लेकिन एक बात बताओ । गोपी से कह रहे हैं ठाकुर जी । तू भी बेपढ़ी-लिखी , मैं भी बेपढ़ा-लिखा । तो तू टोकरी तमाम सारी उठवा ले तो कौन गिनेगा  ? हाँ-हाँ ये तो बात ठीक है । अच्छा देख कन्हैया ! मैं बताती हूँ तरकीब । क्या तरकीब ? तू जितनी बार टोकरी उठाएगा गोबर की , उतनी बार हम तेरे गाल में एक गोबर का टीका लगा देंगे । ठाकुर जी बन गये बेवकूफ । उसने कहा , ये ठीक ।अब वह एक टोकरी उठाया तो एक टीका लगाया । दो टोकरी उठाया तो दो लगाया । अब दस टोकरी में तो दोनों गाल भर गये । तो उन्होंने कहा अब क्या हो । अरे उठाओ-उठाओ , माथा है अभी -

गोमय मंडित भाल कपोलम् ।

सबमें इतना लगा दिया गोबर कि वो सब टीका आपस में मिल गये और ठाकुर जी को क्या पता, वह तो अपना देख नहीं रहे हैं । अब गोपी ने कहा चलो घर , तभी तो मख्खन देंगे , यहाँ कहाँ जेब में रखे हैं क्या ?  चलो । अब घर पहुँचे । ला मख्खन दे । अरे देती हूँ , बैठो तो । शीशा ले आयी गोपी , दिखाया । ठाकुर जी ने कहा - अरे ये क्या ? अरे ! वही टीका तो लगाया था । सब टीका मिल गये तो अब मैं क्या करूँ ? सब टीका इतना पास-पास लगाया कि सब मिल गये । कोई बात नहीं । हम मख्खन देंगे । ठाकुर जी भागे गये और मटकी में पानी भरा था उससे अपना जल्दी - जल्दी जल्दी - जल्दी धो लिया , फिर आये , दे मख्खन । किस बात का मख्खन  ? अरे ! तेरा गोबर उठवाया है , मैं इतनी देर तक । अरे ! वो तो तुमने धो डाला , अब उसका निशान ही खत्म हो गया तो अब कितना मख्खन मैं दूँगी भला । ठाकुर जी का मुँह लटक गया तो गोपी नें चिपटा लिया । अच्छा आओ । खिलाया - पिलाया खैर ।

ये ठाकुर जी की ठकुराई समाप्त कर देती है , जीव की भक्ति , शरणागति । वह भूल जाते हैं , मैं कौन हूँ ? उसके वश में हो जाते हैं । तो भक्तवश्य , ये गुण भगवान् का सबसे बड़ा है ।

  🌷🌷जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज🌷🌷

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...