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ठकुराई और गोबर की टिक्की

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शरणागति में इतना कमाल है ! गोपी कह रही हैं , " ये कन्हैया ! इधर आना । " चले जा रहे हैं सर्वेंट की तरह ।ये टोकरा उठा दे । टोकरा उठा दे । क्यों उठा दूँ  ? अरे ए ! उठा दे न , एक टोकरे पर एक लोदा मख्खन दूँगी । अच्छा ? देगी न ? हाँ दूँगी । लेकिन एक बात बताओ । गोपी से कह रहे हैं ठाकुर जी । तू भी बेपढ़ी-लिखी , मैं भी बेपढ़ा-लिखा । तो तू टोकरी तमाम सारी उठवा ले तो कौन गिनेगा  ? हाँ-हाँ ये तो बात ठीक है । अच्छा देख कन्हैया ! मैं बताती हूँ तरकीब । क्या तरकीब ? तू जितनी बार टोकरी उठाएगा गोबर की , उतनी बार हम तेरे गाल में एक गोबर का टीका लगा देंगे । ठाकुर जी बन गये बेवकूफ । उसने कहा , ये ठीक ।अब वह एक टोकरी उठाया तो एक टीका लगाया । दो टोकरी उठाया तो दो लगाया । अब दस टोकरी में तो दोनों गाल भर गये । तो उन्होंने कहा अब क्या हो । अरे उठाओ-उठाओ , माथा है अभी -

गोमय मंडित भाल कपोलम् ।

सबमें इतना लगा दिया गोबर कि वो सब टीका आपस में मिल गये और ठाकुर जी को क्या पता, वह तो अपना देख नहीं रहे हैं । अब गोपी ने कहा चलो घर , तभी तो मख्खन देंगे , यहाँ कहाँ जेब में रखे हैं क्या ?  चलो । अब घर पहुँचे । ला मख्खन दे । अरे देती हूँ , बैठो तो । शीशा ले आयी गोपी , दिखाया । ठाकुर जी ने कहा - अरे ये क्या ? अरे ! वही टीका तो लगाया था । सब टीका मिल गये तो अब मैं क्या करूँ ? सब टीका इतना पास-पास लगाया कि सब मिल गये । कोई बात नहीं । हम मख्खन देंगे । ठाकुर जी भागे गये और मटकी में पानी भरा था उससे अपना जल्दी - जल्दी जल्दी - जल्दी धो लिया , फिर आये , दे मख्खन । किस बात का मख्खन  ? अरे ! तेरा गोबर उठवाया है , मैं इतनी देर तक । अरे ! वो तो तुमने धो डाला , अब उसका निशान ही खत्म हो गया तो अब कितना मख्खन मैं दूँगी भला । ठाकुर जी का मुँह लटक गया तो गोपी नें चिपटा लिया । अच्छा आओ । खिलाया - पिलाया खैर ।

ये ठाकुर जी की ठकुराई समाप्त कर देती है , जीव की भक्ति , शरणागति । वह भूल जाते हैं , मैं कौन हूँ ? उसके वश में हो जाते हैं । तो भक्तवश्य , ये गुण भगवान् का सबसे बड़ा है ।

  🌷🌷जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज🌷🌷

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