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Showing posts from March, 2016

मौन भाव चिन्हहि कान्हा जब , मंजु दीदी

राधे राधे मौन भाव चीन्हहिं कान्हा जब लखि राधिका कान्हा को प्रथम बार द्रवित ह्रदय में छिपे तरल विचार सलज्ज दृगों में तैरने लगे बारंबार। ब्रीड़ा से बोझिल कर झुकी पलकें रक...

वेदना सम्भालोगे । भाव

देखो तुम कुछ नहीँ करते मेरा एक काम करोगे बोलो करोगें या हर बार की तरह सिर्फ खेलोगे देखो तुम कुछ करते नहीँ बस सताते ही हो और यह काम तुम ही कर सकते हो केवल तुम पर नहीँ तुम्हें नह...

जीवन और तुम ! भाव

यह जीवन और तुम क्या यह दो अलग धारा है यह जीवन है और तुम हो पर मौन हो जिस पथ पर हृदय की आँख है वहाँ तुम हो और यहाँ तुम नहीँ किस से करुँ बात तुम्हारी ऐसा साथ ही नहीँ किससे कहूँ वह दे...

कौन हो तुम । भाव

कौन हो तुम क्यों हो तुम कहीँ वर्षा तो नहीँ .... रूखे सूखे कूप पर गिरती करुणा बन बन कर ... कौन हो तुम !! बुझते दीपक की आज्या हो तुम ? जीवन यज्ञ में कभी स्वधा कभी स्वाहा हो तुम कौन हो तुम क...

युगल स्वरूप के कमल चरणों में बार बार यही प्रार्थना हे राध

युगल स्वरूप के कमल चरणों में बार बार यही प्रार्थना हे राधे....... हे राधामाधव! तुम दोनों दो मुझको चरणों में स्थान। दासी मुझे बनाकर रखो, सेवा का दो अवसर दान।। मैं अति मूढ़, चाकरी की च...

निश्चयात्मक बुद्धि

निश्चयात्मिका बुद्धि कर्म, ज्ञान एवं भक्ति- इन त्रिविध बुद्धियोग में विशुद्ध भक्तियोग विषयिणी बुद्धि ही सर्वाेत्कृष्ट है। मुख्य भक्तियोग का लक्ष्य एकमात्र श्रीकृष्...

शिथिल किञ्चित् भीतर स्पंदन

शिथिल किञ्चित् भीतर स्पंदन मुग्ध अधरा व्याकुल अवचेतन क्षुब्ध धरा पर नव नित्य चिंतन गहर गर्भन्तर निरन्तर मनन विशुब्ध विशुद्ध स्मरब्ध दर्शन बिन्द-अरविन्द-हरेन्द पद-अव...

सुषुप्ति और ब्रज लीला

ब्रज लीला का तत्व भली प्रकार समझने के लिए सुषुप्ति रहस्य को समझना आवश्यक है । जहाँ सुषुप्ति नहीँ और जहाँ स्वप्न भी नहीँ वहीँ प्रकृत जगत अवस्था है । उसी को महाजागरण या परचैत...

नित्य विरह

अभाव (नित्य विरह) ब्रह्म , परमात्मा और भगवान तीनोँ अनुभूतियों में प्रत्येक की ही एक एक स्थिति की अवस्था है  । एक से दूसरी स्थिति में जाना कठिन है , क्योंकि उस स्थिति में मिला र...

विरहानन्द-समर्पणानन्द

लावण्य नि:शब्द प्रीति    विस्फरण आलौकित चेतन त्वरित स्पर्श सर्वस्व हरण    नि:शान्त मृतिका देह सुशान्त तरल मन     प्रशान्त दीपिका पुंज आलोकन का मधुर चुम्बन     प्रस्फुर त...

श्रील हरिदास ठाकुर की हरिनाम को प्रार्थनाएं

-- हरिनाम से प्रार्थनाएं - यही भाव हो हमारा -- हे भगवन ! मुझ पर कृपा कीजिये और मेरी जिह्वा पर प्रकट हो जाइये; वहां निरंतर नृत्य कीजिये । हे भगवन ! मैं आपके चरणों में गिरकर आपसे यह विन...

श्री कृष्ण और कदम्ब के वृक्ष

श्री कृष्ण और कदम्ब का वृक्ष समग्र मधुवन में श्री कृष्ण को कदम्ब का वृक्ष ही सर्वाधिक प्रिय है। अनगिनत भौतिक उपयोगिताओं से विशिष्ट यह वृक्ष बलराम शेषनाग स्कन्द के अति प्...

आज तो गज़ब ढाये दियो सलोनी जी भाव

अरी सखी आज तो गजब ढाये दियो गजब!!!! मत पूछ कैसो गजब उदासी की मटकी फोड़ी हाए ।। बहरूपिया बन आया अब जौहरी कहत उन नग हीरों की कीमत जाणो हो जा सजो उन भगवन तन जिन तू पिया पिया कह हो कंठ लग...

पूण्य कहे तो पाप भी कहे

स्वगाथा , पुण्यों का बखान , महिमा आदि बहुत कहते है , बल्कि सब कहते है । साहस चाहिये सत्य हेतु । सब पूण्य कहे तो सब पाप भी । पाप कहते ना बने तो पूण्य को कहना व्यर्थ है । जो हाथी चींटी ...

मन्दिर उनका प्रतीक्षालय तृषित भाव

मैं आज फिर लौट आयी मन्दिर से और वह वहीँ है मैंने कहा मुझे ईश्क है , उसने कहा नहीँ  , मैंने सुना वह देता है , मांग कर देखा , उसने फिर भी कुछ चाहा नहीँ जब मैं मन्दिर गई या कहू प्रियतम स...

कहते है , तृषित भाव

कहते है --- ना , ना बिल्कुल ना । कुछ ना कहो । ना कहो मैं प्रेमी हूँ ना कहो मुझे प्रेम है सब से । ना कहो इन्हें कि एक बार मुझे आलिंगन ही कर लेना है तुम कहोगे तो इनकी मंशा टूटेगी मेरी न...