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श्यामसुन्दर की रस चितवन , मृदुला

श्री राधा

रस भरी चितवन रस भरी अलकन
रस भरी मुस्कन रस भरी पलकन
रस बरसाते नयन रसीले
रस छलकाते अधर रसीले
रसमयी कोर मरोर सैनन की
रसपगी मधुर गिरा बैनन की
रस को पाग सजी भाल पर
रस को रचना बनी गाल पर
रस की लडियाँ गुंथी अलक में
रस को कज्जल रची नयन में
रसराज की रसमयी देह का रसमय श्रृंगार आहा ....॥नख शिख रस के सिंधु से हमारे रसिक प्रियतम ॥ रस की अलकें रस के गुच्छे सी बनकर झूल रहीं हैं प्यारे के रसमय भाल पर ॥इन रस की लडियों से झरते रस बिंदुओं से प्रियतम ललाट की शोभा अपूर्वता को छू रही  ॥ मस्तक पर लपेटी लटपटी सी रसीली पाग जिसमें केयूर के पिच्छ रसमुक्ताओं के आश्रय अलंकृत हो निष्कामता का उद्घोष कर रयो है ॥।केयूर मुकुट के छोर से लटकती रस रत्नों की लड़ी ॥ पाग के दूसरे छोर पर विलसते दो रसीले पीत पुष्प जो झुक झुक कर ललाट को चूमने को प्रयास में अपने रस कण ललाट पर छिड़के जा रहे हैं ॥ नील इन्दीवर सम मुखमंडल पर सजे दो रस कमल से ,कर्णों का चुम्बन कर अपनी विशालता का दर्शन कराते दो रसीले सरसीले नशीले सकुचीले से दृगन जिनमें रस की अनन्त लहरियाँ सदा उमड़ती घुमडती, देखने वाले को अपने में डुबो स्वयं को विस्मृत करने को ललचाती सी लहराती रहतीं हैं ॥ और इन दृगों की कोर आहा ये चरम  त्याग की उदगम स्थली ही हैं

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