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र से रस , कृष्ण संगिनी जु

!!कृष्ण !!

एक अति गहनतम रस झन्कार 'र' शब्द की थिरकन में और अत्यधिक गहनतम प्रगाढ़तम रस झन्कार इस सरगम के रसराज प्रियतम से जुड़े होने में है।कृष्ण परात्पर जगत के स्वामी जिन्हें रसराज प्रियतम श्यामसुंदर होते हुए भी ऐश्वर्य स्वरूप श्रीकृष्ण भगवान कहा जाता है पर इनके नाम के अक्षर में एक गहन भाव छुपा है जो उन्हें अपने ही आधीन तो करता है ही पर साथ ही साथ पूर्णता का एहसास भी देता है।प्रियतम श्यामसुंदर रसराजशेखर के नाम मात्र में इतना रस है कि एक बार अधर पर सजाते ही पूरी देह में थिरकन पैदा कर देता है।कृष्ण एक भाव जो निरंतर महाभावरसस्वरूपा श्रीराधा से रस लेता और नित्य नव रस झन्कारों को सखीरूप में स्पंदन भी देता है।इनके नाम में 'र' सरगम राधा नाम से रसपूर्ण होता है।यह रस और भी गहरा जाता है जब कृष्ण स्वयं श्रीराधा में रसभावरूप ही बहते हैं।सखीरूप उनकी सेवा करते हैं और स्वयं को उन बिन अधूरा पाते हैं।'र' से रस की यह भावपूर्ण थिरकन कृष्ण संग भी अधूरी है क्यों कि कृष्ण स्वयं ही अकेले अधूरे ही हैं।उनकी पूर्णता छुपी हुई भी प्रतिबिम्बित है इस सरगम के उद्गम में और सम्माहित विश्रामित भी इसी सिहरन स्पंदन भरे रस में जिनका नाम है राधा।
हे प्रिया हे प्रियतम !
मुझे इन रस सरगमों की
एक मधुर रस झन्कार कर दो
तुम जो कह दो तो
व्याकुल थिरकती रस तरंगों में
कृष्ण नाम धमनियों में
रस बन मधुर रस
श्वासों की माला में बुनती रहूँ  !!

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