!! प्रेम वैचित्य !!
सदैव मिले हुए श्यामा श्यामसुंदर जु के हृदय की वीणा की तारों पर थिरकती अनंत भाव झन्कारें कभी उन्हें मिलन के आनंद में अति विभोर करती हैं तो कभी कभी जाने अनजाने यही मधुर रस झन्कारें उन्हें विरह में भी डूबते उतरते शीतल अति गहनतम रस फुहारों में स्नान कराती हैं।एक ही रस झूलन पर गलबहियाँ डाले वन विहार से श्रमित श्री युगल संग संग विराजे हैं।एक कर से झूले की कोमल पुष्पाविंत डोरी को पकड़े व दूसरे से श्यामा जु की कोमलाम्बुज रस अंगुरियों में अंगुरियाँ डाले हुए हैं।श्रमबिंदुओं की सीलन ब्यार में इनकी रसस्कित महक को घोले ज्यों ही विचरण करती है कई कई मधुसूदन भ्रमर इन्हें कमल पुष्प तुल्य जान इन पर मंडराने लगते हैं।प्रियतम इन भ्रमर मधुमक्खियों को बींजन से दूर हटाने लगते हैं कि इधर श्यामा जु प्रेम वैचित्य की अति गहन रस झन्कारों को सुन विहरित होने लगतीं हैं।प्रियतम श्यामसुंदर श्यामा जु के नम हस्तकमलों के स्पर्श से श्यामा जु की वैचित्य भावभंगिमा को देख उदास होते हुए उन्हें तुरंत गोद में लेते हैं।पर प्रिया जु तो अति अधीर हुईं कृष्ण कृष्ण पुकारतीं मूर्छित होने लगतीं हैं।उनके हृदय मंडल पर श्रमबूँदें व नयनों से रसनिर्झरन होता देख श्यामसुंदर व्याकुल हो उठते हैं और उनकी प्रेम वैचित्य की गहन दशा में रोम रोम से विरह को पीने लगते हैं।अधर से अधररस पान करते जैसे ही श्यामसुंदर जु के श्रमबिन्दु श्यामा जु के निमलित नेत्रों पर गिरते हैं तो वे कुछ संवरित तो होतीं हैं पर रस गाढ़तावश अति गहन रसप्रवाह करतीं प्रियतम को रसभींजन में अतिगहन आलिंगित व रसित करतीं हैं।प्रियतम श्यामा जु की अधीरता में अधीर हुए अश्रु बहाते रति चिन्हों को देख उन्हें संवरित करने हेतु बहुत प्रयास कर रहे हैं पर श्यामा जु आज गहन वैचित्य में रस निदान करतीं निशांत लीला को थमने नहीं दे रहीं।तब सहचरी सखियाँ भी चंवर डुराती कभी ताम्बूल पान कराती हैं और उनके चरणों को सहलाती हैं।इस बीच श्यामसुंदर जु प्रिया जु को आलिंगित चुंबित करते उन्हें आवरण औढ़ाने लगते हैं और धीरे धीरे उन्हें रसलिप्त ही अपने सीने से लगा झूले पर ही अधलेटे से गहनालिंगित कर लेते हैं।प्रिया जु अखियाँ मीचे श्यामसुंदर जु से लिपटी हुईं उनके वक्ष् पर शांत ही लेट जातीं हैं और उन्हें अतिश्रम से निद्रा आ जाती है।ऐसी गहन रसझन्कारें उन्हें पल पल स्पंदित कंपित करती रहती हैं और युगल आलिंगनबद्ध रस में डूबे रहते हैं।
हे प्रिया हे प्रियतम !
मुझे अति गहन
'र' सरगम की अंतर्निहित
मौन व थिरकती
रस झन्कार कर दो
तुम जो कह दो तो
व्याकुलता में तुम्हें
आनंदित करती
सदा स्पंदित रसतरंगित करूँ !!
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