प्रेम कों खिलौना दोऊ खेलैं प्रेम कू खेल
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अधरन धर बंसिया लसै दूजो वीणा हिय सजै
मधुरसुता ढरकत वृंद बनि पुष्पनि को सुभग सेज
ऊपर सजि लालि गुलाब सों करै छांव सघन कुंजै
ढुरकि ढुरकि हरो रंग लाल लालि सों कियो हरो बिसेस
ज्यूं धुन सों धुनि मिलि जाबै दोऊन एक प्रेम रस बहै !
-2-
अखियन सों अखियां मिलि हेरि हेरि नाहिं अघै
रस रसीली छलकत घणो रसमधु भरि नयन छकै
बिंदु कोर जहं अधर सिलै हिय रस अधरन सों पियै
रससरिता रससिंधु दोऊ दोऊ दोऊन कै रसना रस झरै
बंध जित कसै रहै उत खिलै कमल माहिं भ्रमर रसहुं चखै !
-3-
सुबदनी धनी बैठि तन संभारि कै
रस लम्पट तकै छलकै ज्यूं मधु भृंग रसाल तैं
तीक्ष्ण कटाक्ष सों बतियाँ करै ज्यूं प्रहार दसन कै
पिय प्यारि प्यारि पिय मानिनि सों मान काह करै
अखियन ते कर रख अधर रस सुजान बीच उदर धरै !
-4-
रसमगे रसपगे द्विजन रहैं डूबै
इक अखियन रेख अंजन बन रहै दूजो अधर लालि बनै
कंठहार बन हिय तैं बसै दूजो वक्ष् सुखनिहूं सेज संग लसै
एकहू कटि करधनि पै ढुरकै दूजो कामरिया रंग रस सों रंगै
घुल मिलि रहत ज्यूं रजनि सों अंधियारो ते ऊषा सों उजियारो मिलै !
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