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अवगुण की मै खान ... संगिनी जु

अवगुण की मैं खान मोहना किस विधि तुम्हें रिझाऊँ
मन का दर्पण मैला होवै मैं कैसे अपना मुख दिखलाऊँ
जप तप ना कोई भजन साधना मन में कोई प्रेम न मेरे
पतित अधम विषयी और कामी पड़ी भव बन्धन के फेरे
आप हाथ देय मोहे निकारो मुझ निर्बल का बल तुम नाथा
भटक न जाऊँ भव सागर में राख लेयो मोहे करो सनाथा
नाम भक्ति का धन मोहे दीजौ मैं निर्धन भव बाधा घेरी
चरणों की मोहे धूरि बना लो मेटो पीर मोहना अब मेरी

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