श्री राधा
सरस झांकी
सखियाँ .....प्रिया प्रियतम के संयुक्त प्रेम भाव की परस्पर सुख लालसा की साकार प्रतिमाएँ ॥ प्रिया लाल के सुख के अनन्त प्यास को प्राणों में संजोये नित नवीन नित नूतन रसमयी झांकियां सजाना ही तो जीवन इन रस की झूमती तरंग मालाओं का ॥तो आज पुनः एक रस झांकी उकेरी है इन्होंने निकुंज के चित्रपट पे .....॥
झूलन लीला संजोयी है आज सखियों ने हिलमिल कर ॥ निकुंज उपवन में जहाँ प्रिया प्रियतम के हृदय रस से न जाने कितने फूल खिल खिल कर उनके रस को सुगंध रूप सर्वत्र प्रसारित कर रहे हैं । साखियों ने प्रेम रज्जु में इन्हीं रस प्रसूनों को गूंथ गूंथ हृदय रूपी पटल से जोड़ कर रस भाव की अनन्त लहरियों में युगल को ले जाने वाले सुंदर झूले की रचना की है ॥ लाल प्रिया परस्पर गलबहियाँ किये नेत्रों में नेत्र डुबोये चरण नूपुरों की मधुर झन्कार से सखियों के हृदय में रस वर्षण करते इस प्रेम उपवन में आ गये हैं ॥ सखियाँ इन दो प्रेम विहगो को बडें लाड से कोमल पुष्प की भांति सहेज अपने हृदय के झूले पर विराजमान करायीं हैं ॥ प्रेम रस में निमग्न दो सुकोमल कमलों का रस मकरंद परस्पर के सानिध्य से और मधुरता को प्राप्त कर चहुंओर सुवासित हो रहा है ॥ सखियाँ चित्रलिखी सी युगल रस माधुरी में निमज्जन करने को उत्सुक परंतु .....॥अभी तो रस सेवा शेष है कि रस के दो सिंधु अपनी रस लहरों को समेटे से ही खोये हैं तो इन्हें इनकी रस लहरें कैसै रसार्चन करें परस्पर ॥ सखियों के हृदय की लालसा ही आकाश में मेघ बन घुमडने लगी हैं ॥ हृदय की कामना ही जल की नन्हीं नन्हीं फुहार बन बरस बरस कर युगल को रससिक्त कर रही है ॥ कोई सखी कोकिल बन कुहु कुहु की ध्वनी रूप हो युगल के हृदय को झंकृत कर रही तो कोई केयूर हो मेघों का स्वागत कर रही है ॥ कोई शीतल सुगंधित समीर हो प्रिया की चूनर को लहरा लहरा कर लाल जू के हृदय को धैर्य से च्युत करने का ही प्रण लिये बैठी है तो कोई मेघों के बीच चपला सी चमक कर भयवश प्रिया के लाल जू के हृदय पर सिमट आने की लाल जू की मनोकामना का ही साकार रूप हो इठला रही है ॥ कोई सुमधुर राग रागिनियों के रूप मे रस की बयार बन बह रही है ॥ सखियों की कामना प्रियतम हृदय में रस तृषा हो सरसाने लगी है ॥ आकाश से झिरमिर करती रस की नन्हीं नन्हीं लडियाँ श्री प्रिया के वसनों को भिगो कर उनके रस अंगों से एकाकार कर चुकीं हैं ॥ पुष्प आभूषणों से टपकती रस की बूंदे जैसे प्रियतम हृदय में संगीत के तार छेड़ रहीं हैं ॥ प्रियतम के तृषित नयन अब प्रिया नेत्रों से फिसल कर मंद मंद नीचे की ओर खिंचें से जा रहे हैं ॥ रसपूरित बिम्ब अधर जो रस फुहारों से सुसज्जित हो और रसीले हो उठे हैं ॥ कर्ण पुष्पों से झरती वर्षा की बूंदे तो कभी कंठ मे पडे पुष्पहार की कोमल रसमय सरसराहट आहा......सब कुछ जैसै लाल जू को अपने में समेट लेने को आतुर ॥ कंठहार के आलंबन से नीचे उतरती प्रियतम की दृष्टि अब निज प्रिया के भीगे वसनों से झलकते रस पुंजों पर आबद्ध हो चुकी है ॥ रस के सिंधु में बाढ सी आ गयी है जो समस्त तटों को तोड़ रसराज को अपने में डुबोने को बह चली है चहुंओर रस का वर्षण करती हुयी .......॥
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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