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र से रस , 39 , संगिनी जु

!! आमंत्रण निमंत्रण !!

भक्तगण पुकारें और तुम ना आओ ऐसा कभी नहीं हुआ।श्रीयुगल जु में जैसी मिलनइच्छा परस्पर पर तत्सुख हेतु है वैसे ही उनके भीतर तड़प है अपने प्रिय भक्तों के लिए जो गहरी टीस से उन्हें सदैव पुकारते हैं।प्रियाप्रियतम मिलन हेतु जैसी लीलादृष्टि युगल रसिकों में है वैसी ही लीलाधर लीलाएँ रचते हैं अपने उन भक्तों के अति शीघ्र मिलन हेतु।ऐसा नहीं है कि उन रस भ्रमरों को अपने प्रिय भक्तों की टीस भरी झन्कारें कम्पित नहीं करतीं अपितु यह वही झन्कारें हैं जो प्रियालाल जु को परस्पर तो आकर्षित करती हैं ही और इन्हें आकर्षित करती हैं इन लीलाओं के रसपान में डूबे प्रेममय हृदयों को भी जिनका प्राण हैं युगल मिलन व स्वयं को भूल उन्हें स्मरण करना।कई कई यंत्रणाओं मंत्रणाओं की उपेक्षा भक्तजन केवल एक ही आस लिए श्यामा श्यामसुंदर जु को पुकारते रहते हैं।उनके तन मन सदा झन्कृत रहते हैं कि किस घड़ी वे श्रीयुगल के सम्मुख होंगे और उनमें डूबे हुए सम्माहित हो जाएंगे।अति दैन्य भाव लिए ये ब्रजवासी जो श्रीवृंदावन वास पा कर अत्यंत धनी हैं और मधुकरी पाते स्वयं को श्यामा जु के दास बताते हैं।हम बड़भागी श्रीश्यामा जु के या हम भिखारिन तेरे दर के ऐसी ऐसी मनोभावों को झन्कृत कर देने वाली रससंगतियाँ और कभी कभी प्रेम भरी वाणी में अति गहन अपनेपन से मनुहार या सुंदर ब्रजभाषा में मधुस्मित गालियाँ भी सुनाते ये ब्रजवासी सदैव आमंत्रण निमंत्रण की पुकार से द्रवीभूत होते रहते हैं।ये ब्रजवासी श्रीयुगल की रगों में बहते प्रेम रस जैसे हैं जो परस्पर बलिहार जाते हैं श्रीयुगल की करूणा और प्रेम पर।इनके अद्भुत रसभीने प्रेम उलाहनों और कटाक्षों में भी प्रेम युगल नख से शिख तक झन्कृत हो जाते हैं।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे उन रसरूप ब्रजवासियों के
हृदय मंदिर की झन्कार
थिरकते कदमों की धूल
रसना की गुदगुदाती वाणी
कानों की मधुर ध्वनि
और नयनों की बहती प्यास कर दो
तुम जो कह दो तो
तुम्हारे आमंत्रण पर
एक बार उस रस भूमि पर
थिरकती सिहरती झन्कार बनूं
एक बार तो रज में लौट
रस व्याकुलता को शीतल कर
सदा मिलन की तड़प में जलूं !!

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