!! रस परिक्रमा !!
परिक्रमा अर्थात किसी मंदिर या मूर्ति की परिक्रमा नहीं।रसिकों के भाव से परिक्रमा अर्थात भावपूर्ण परिक्रमा।एक तो जो वे करते गिरिराज जु की और एक रस परिक्रमा जो होती युगल सखियों की अपने प्रियालाल जु के नख से शिख तक एक एक रसअंग व रसश्रृंगार की।अति गहन भाव रस के रसिक व रस सखियाँ श्रीयुगल की ही परिक्रमा करते जो रसस्वरूप भी हैं और भिन्नता में अभिन्नता की परिपाटी भी।श्रीयुगल सखियाँ भिन्न देहों में अवतरित एक अटूट अभिन्न रस लिए युगलार्थ ही सदैव झन्कृत होते व उनके रसावरण की परिक्रमा करते रहते हैं।ऐसी ही एक अति गहनतम रस परिक्रमा करते हैं श्रीयुगल परस्पर।प्रभात में स्नान आदि कर जब झीनी सी साड़ी पहन श्यामा जु श्रृंगार हेतु सखियों संग श्रृंगार भवन में परिविष्ट होते हैं तो उनकी भीगी हुई सी रूपमाधुरी से रसबूँदें श्यामसुंदर जु के सांवल मुख पर झलकती हैं और वे वंशी बजाना छोड़ सखियों से श्यामा जु की श्रृंगार सेवा का आग्रह कर बैठते हैं।उनकी दैन्यता भरी मनुहार सुन सखियाँ उन्हें एक मौका देतीं हैं।अब जब श्यामसुंदर जु अपनी प्रिया जु की सेवारत सखी रूप उनका अद्भुत श्रृंगार करते हैं तो सखियाँ अत्यंत चकित सी हो बस निहारती ही रह जातीं हैं।इतना दिव्य भव्य श्रृंगार कि वे अति अति बलाईयाँ लेतीं अपने नेत्र ही झुका लेती हैं कि कहीं उनकी नज़र ना लग जाए रसमाधुर्य की रूपराशि श्यामा जु को।नेत्रों में अंजन लगाते श्यामसुंदर जु स्वयं अंजन रूप हो जाते हैं और पूरी सतर्कता बरतते हैं कि थोड़ी भी चूक हुई तो सखियाँ फिर उन्हें सेवा का मौका ना देंगी।प्रिया जु अपने अति चंचल प्रियतम को निहारतीं उन्हें श्रृंगार धराने का प्रस्ताव रख देतीं हैं।तब तो सखियाँ और भी चौकन्नी हो मुख फेर कर दर्पण में ही श्रीयुगल को निहारने लगतीं हैं।वे जान ही नहीं पातीं कि इनमें कौन प्रिया और कौन प्रियतम हैं।परस्पर श्रृंगार धराने पर अब प्रियालाल जु परस्पर बैठ पूर्ण तन्मयता से एक दूसरे को निहारने लगते हैं।इस निहारन में आश्चर्य यह कि वे दोनों एक एक अंग व आभूषण का नीरीक्षण कर रहे हैं और जिस भी आभूषण पर श्यामा जु दृष्टि डालती हैं उसी को लाल जु निहार रहे होते हैं।ऐसे निहारने में हर एक आभूषण आरसी रूप प्रियालाल जु को परस्पर उनकी ही रूपछवि दिखाने लगते हैं और एक ही आभूषण को एक ही समय पर निहारने में उनकी नज़रें भी मिलती ही हैं और यूँ होती है रस परिक्रमा श्रीयुगल की परस्पर नख से शिख तक।सत्य में अद्भुत रस झन्कारें परस्पर श्यामा श्यामसुंदर जु और फिर सखियों व श्रीयुगल जु में।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इस अद्भुत रस परिक्रमा की
रस ध्वनित झन्कार कर दो
तुम जो कह दो तो
तुम में तुम्हारी रूपराशी की
सखियों व रसिकों की
रस परिक्रमा में
बहकती मचलती
भावपूर्ण दर्शनार्थ
रस चपला सी नख से शिख तक
रस झन्कृत होती रहूँ !!
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