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र से रस, 41 , संगिनी जु

!! खेरि रंग रंगे रंगीली रंगीले !!

मधुर झन्कारें शरारत भरी चित्तवनें खेल खेलती चंचल रंग रंगीले श्रीयुगल की सदा सुनाई देती रहती हैं धराधाम पर।प्रिय सखियों संग तो कभी सखियों द्वारा रसवर्धन हेतु रचाई खेल लीलाएँ श्रीयुगल को सदैव रसमगे बनाए रखती मधुर झन्कारें हैं।प्रियालाल जु सखियों के आगमन से कुछ पूर्व ही जग कर छुप जाते हैं ताकि एक दूसरे में डूबे रह सकें तो ऐसा सोच वे हड़बड़ाहट में श्य्या से प्रस्थान कर सघन निकुंज में चले जाते हैं।लाल जु ने प्रिया जु का कर पकड़ लिया और उन्हें अपने साथ छुपा लेने के लिए भागे।प्रिया जु ने जल्दी में लाल जु का पीताम्बर अपने ऊपरी रसदेह पर औढ़ लिया है और नींवि बंधन करतीं हुईं संग भागीं।श्यामसुंदर जु ने ओपरना भी नहीं लिया और वहाँ से चले जाते हैं।यह देख शुक सारि खूब चहचहाते हैं जिसे सुन सखियाँ शीघ्रता से द्वार खोल देखती हैं कि प्रियालाल जु वहाँ नहीं हैं और श्य्या पर प्यारी जु की कंचुकी व नीलाम्बर पड़ा है।सखियाँ उन्हें व्याकुलतावश ढूँढने लगतीं हैं और कुछ आँख मिचौनी की रस लीला समझती आनंद में डूबी मुस्काती हुई श्यामा श्यामसुंदर जु को पुकारने लगतीं हैं।पर प्रियालाल जु कुछ नहीं बोलते और लाल जु श्यामा जु की पायल को अपने चरणों से सहज दबाए खड़े हैं और अपने करों से उनके कंकनों को खनकने से रोके हुए हैं।श्यामा जु भी एक कर से लाल जु की कटि किंकणियों को थामे और दूसरे से सरकते पीताम्बर को संभाल रहीं हैं।सरकते पीताम्बर से झांकते रसअंगों को देख श्यामसुंदर जु मंद मुस्का लिपट रहे हैं और प्रिया जु भी उनके विशाल वक्ष् की अंगकांति सौरभ को देख मुग्ध सी उन पर झुकी जातीं हैं।आभूषणों की खामोश झन्कारों में श्रीयुगल की अंतर्निहित रसझन्कारें धधक रही हैं और आमंत्रित कर रही हैं उन्हें परस्पर डूबने के लिए।इधर सखियों ने लुक्का छिप्पी खेलते युगल को ढूँढ लिया है पर वे निकुंज की दरारों और सघन झरोखों से उन्हें परस्पर निहारन को निहार सुख पातीं हैं।सखियों ने भी अपने आभूषणों की झन्कारों को रोक रखा है और उनके हृदय की झन्कारें नाद बन श्वास रूप तरंगायित हो रही हैं।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इन महाप्रेम की
तरंगायित मधुर लहरियाँ कर दो
सदा व्याकुल झन्कृत होती रहूँ
तुम जो कह दो तो
तुम गलबहियाँ डाले रहो
और रसझन्कार बन स्पंदित करूँ  !!

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