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रस ही रस लीला भाव , मृदुला

नवल नागरी पिय उर भामिनी निकुंज उपवन में सखियों सहित मंद गति से धरा को पुलकित करती आ गयी हैं ॥ प्रिया के मुखकमल की शोभा लाल जू को सरसा रही है ॥ विशाल कर्णचुम्बी कमल दल लोचन जैसै रसार्णव , रस को सार दो खिले अधर पल्लव  ,लावण्य के सिंधु से दो अरुणिम कपोल , कपोलों को छूने को आतुर नील कुन्तल अलकावलियाँ , तिरछी भौंहे मानो काम की प्रत्यंचा खिंची हो ॥ प्रियतम तो इस दर्शन से ही सुध बुध खोने लगे हैं पर सेवा भावना रूपी सखि लाल जू को सचेत कर रही ॥ अतिशय नेह पगे स्वर से किशोरी सखियों से अनुनय कर रहे हैं प्यारी सखियों आज मोहे नेक सो प्रिया चरणन की सेवा को सौभाग्य प्रदान कर दीजो ॥ उनके इस मनुहार पर सखियाँ रीझ रहीं है और लाल जू की  प्रेममय सेवा उत्कंठा पर प्यारी जू मन ही मन बलिहारी जा रहीं हैं और व्याकुल हो सखियों को तिरछी चितवन से निहार रहीं हैं मानो कह रहीं हैं कि मान जाओ न प्यारे की विनय॥ सखियों के मन तो युगल से नित्य अभिन्न है पर दोनों की रस तृषा को शत सहस्त्र गुना करना ही तो इनकी सेवा है न ,सो आज्ञा नाहिं मिल रही प्यारे को ॥ हमें पता कि तुम रस लम्पट सदा हमारी प्यारी सुकुमारी सखि के चरन स्पर्श को ललचाते रहते हो ॥ नित्य नवीन मिस से (बहाने से )इन चरण युगलों को स्पर्श करना तुम्हारा व्यसन है प्यारे ॥ लाल जू अपने हृदय की बात सखियों के मुख से सुन हंस पडे हैं ॥ जैसै जल सरगम किसी ने छेड दी हो ॥उनके इस रस वर्षण ने सखियों को प्रमुदित कर दिया है ॥चलो ठीक है पर देखो तनिक सा भी कष्ट न देना हमारी सखि को ॥ सखियों ने ऊँचे से पुष्प सिहांसन पर लाडली को विराजमान कर दीना है और स्वयं एक ओर खडी रहकर इस रसमय दृश्य में निमज्जन करने लगीं हैं ॥ प्रिया के अतिशय सुकोमल पद पल्लवों को लाल जू निहार रहें हैं ॥ सोच रहे कि कितने सुकोमल हैं मेरी प्यारी के चरण कैसै स्पर्श करुं इनका ॥ साहस ही न हो रहा छूने का ॥ लाल जू की यह दशा देख सखियाँ उन्हें भाव जडता से बाहर ला सेवा सुख का रसास्वादन कराने हित विनोद कर कह रहीं हैं कि लाल जू तनिक सेवा भी करोगे हमारी प्यारी की या बिना सेवा के यूंही रसपान करते रहोगे ॥ सखियों के इस विनोद ने लाल जू को पुनः सेवा के लिये सचेत कर दीना है ॥ पर स्पर्श कैसै करुँ इन महाभाव सार स्वरूप चरणों का आह ....॥ लाल जू का रसपगा ,प्रेम को भंडार हृदय ही तो छू सकता प्रिया चरणों को तो लो उतर आया है उनका हृदय उनकी कोमल सरस करावलियों में ॥ इन सरस करावलियों में समा हृदय ही अब निज स्पंदनों को प्रिया चरणों में निवेदित कर रहा है ॥ पर क्या प्रिया ने अपने सार सर्वस्व के प्रेममय हृदय और उसके रसपूर्ण कोमल स्पंदन को, उनकी छुअन को नहीं पहचाना क्या ॥ वे तो कब से पहचान चुकीं हैं उस परम प्रेमिल हृदय स्पर्श को तभी तो उनका परम प्रेम को उदगम् स्वरूप रससिक्त हृदय ही समा चुका है उनके कोमल चरण कमलों में ॥ करावलियों से छलकता लाल जू का हृदय और चरण सम्पदा में सिमटा प्रिया का हृदय ॥ सखियाँ देख रहीं हैं कि लाल जू की सुकोमल करावलियाँ श्री प्रिया के मृदुल चरणों में पायल धारण करा रहीं हैं पर वहाँ तो मिलन हो रहा है हृदय का हृदय से ॥ प्रिया का हृदय प्रियतम के हृदय स्पंदनों को अपने में समेट रहा है और संग संग ही बह चला है ॥ दो प्रेम पूरित हृदय रस सिंधु में पूर्णतयाः निमग्न हो एक हो चुके हैं केवल रस ही रस शेष है अब ......॥

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