रसभींजै रसतृषित रसयुगल
-1-
अति रस बाढ़ियो तन मन अर्पण करि डारयो
एकहू देह द्विप्रानण छबि न्यारि चंद्र चाँननि पसरायो
एकहू टक निहारि रहै रंग रूप निजतन कू बिसारियो
वारि वारि जात दुई एकहू रसछटा दोऊन नै दोऊन पै वारेयो !
-2-
रूप की रासि अनूप छलकत रहि सदा अनुरूप
जेहिं जेहिं जु प्यारौ ढुरकै तेंहि तेंहि प्यारि लेत सुरूप
रस छलिया रसनि सों ललसै रस बहात रसीलि अतिरूप
रसभींजै रहै रसतृषित ज्यूं भींजि रहै प्यासि मीन जलकूप !
-3-
रस बरसियो रस रसाल रसना सों
रस टपकै अपार लाल अधरन सुधा ज्यों
रस लम्पट लपटै लपकै अतिबार प्यारि हियों
हित करै और हित चहै सजनि तन मन सब वारि सजना सों !
-4-
बैठि पिय प्यारि हिय लग अधर धर अधरन तान छेड़ि रस
नयन नयनन बिच अटकै अलक अलकन सों उरझावै
माथे चंद्रिका मोरपख निहारै नख बेसर नथुनि तैं वारै
कर्णफूल कुंडल झलकालै चिबुक मणि कस्तूरि बिन्दु निहारै !
-5-
जुगल आज बिरहत गलबहियां डारै
कर लकुटिया कटि बंसिया कराम्बुज नीलाम्बुज धारै
हिय सों हिय मिलिततनु चलैं दोऊ चालि चपल मयूरि मयूरै
लाल कंचुकि पीताम्बर सों लिपटै नीलाम्बर उड़ि अधरन रस चूमै !
-6-
मतवारि भई चाल संईया की
निरख निरख रूप की रासि रस लम्पट लपक रह्यो
चलत चलत इत उत रूक जात रंगीलि रंगीले रस चाखन कौ
एकहू पग अखियन सों पीबै दूजै अधरन धर अधरसुधा चाह्वौ
तीजै पद धरै नजर रस हिय तैं चौथे में रस रसनि सों पूर्ण डूब जावौ !
-7-
प्यारे कों प्यारि लगै प्यारि कों प्यारै
द्विजन द्विछबि कू निरखै धरि एकहू मन
प्यारि में प्यारो भरै प्यारि में प्यारो रस झलकै
द्विजन द्विरसनि तैं लपकै करि एकहू एकहि तन !
-8-
गौर छवि नीलि भई नीलि पीतबर्णि
दमकत दामिनि धक धक घण मिलि जब बरसै
नील गगन धरा जलज महक रज धूसर अम्बर बौवै
रस बूँदिया टपकैं रस सरिता में सुनहरि तन स्यामल होवै
बरस बरस द्वै रंग रंगिनिया झलकत इंद्रधनुस नवरसरंग पौवै !
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