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रसराज के रस आवर्त , मृदुला

परम प्राण सार सर्वस्व मोहन का दिव्य रसमय श्रृंगार आहा .....वही रसराज रससिंधु के गहन रस आवर्त ....॥तिरछी झुकी सी ग्रीवा और तिरछी चितवन से रस की सुधा और तृषा दोनो को युगपत प्यारी के मुखारविन्द पर सरसाते दो विशाल कमल दल लोचन ॥ प्राण वल्लभ का परमोदार विशाल वक्षस्थल जैसै शोभा का सागर ॥ माधुर्य भाव भावित प्रेयसियों की शरणस्थली॥ रससिद्ध रसिकाओं के पंचशर से बिंधे हुये हृदयों की रक्षा करने में सदैव तत्पर ये लावण्य सार सिंधु सा परम आश्रय ॥ इस मोहकता के सिंधु में डूबी हुयी सुखदान करती हुयी गोपांगनाओं के हृदय अभिसार स्वरूप ये नाना रत्नो , मुक्ताओं की मनभाविनी लडियाँ धारण कर उनके प्रदत्त सुखों का समादर करते हमारे परमोदार जीवन सर्वस्व ॥ चरणों को चूमती गुंजमाल रसिक भ्रमरों को पथ भुला देने वाली सुगंध का प्रसार कर रही है ॥श्री अंग से लिपटा वह अंग की सुकुमारता से होड लेता हुआ परम सुकोमल अंग वस्त्र इतनी कोमलता से श्यामल गात से लिपटा है कि लागे कि श्री प्रिया का कोई परम गूढ़ आंतरिक भाव ही प्रियतम से आलिंगनबद्ध हो रसकेलि में लीन है ॥ एक रसआवर्त से निकसें तो दूजे में खो जावें .....आहा यह तिरछी कटि मोहकता को भी मोहकता का दान करने वाली परम गंभीर नाभि को अपने रसकुंड में कमल की भांति सहेजे हुये रस का विस्तार कर रही है ॥ कटि से आबद्ध  वो प्रिया की अंगकांति को धारण किये हुये परम रस तरंगों को समेटे शोभा का अद्वितीय सागर सा पीताम्बर ॥  शिथिलता से बांधी गयी रत्न मेखला क्षीण सी कटि का त्याग कर पीताम्बर पर यूँ सरक आई है जैसै प्रिया सहज सर्वत्याग कर निज प्रियतम से मिलने आ गयी हो ॥ इस प्रिया रूपी रत्न किंकणी से संयुक्त छोटी छोटी मुक्ता की झिलमिलाती किरणें एसे प्रतीत हो रहीं है कि जैसै श्री प्रिया अपनी अनन्त भावों को साथ लिये प्राण वल्लभ से आलिंगित हो रस विस्तार कर रहीं हैं ॥

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