[4/18, 20:43] Mridula Fb: उनसे एक होने को मन । एक होना पर कैसा एक होना ....। उनके नेत्रों में मेरे नेत्र भरे हों , उनके अधरों में ही मेरे अधर समाये उनके स्पर्श में ही मेरा स्पर्श उनकी अनुभूति में ही मेरी अनुभूति हो उनकी मति में ही मेरी मति उनकी गति में ही मेरी गति ......॥ उनसे पूर्ण एकाकार ही हो रहूं ॥ ऐसा सोचते सोचते फिर लगे कि उनकी देह ही मेरी देह हो उनके समस्त अनुभव ही मेरे अनुभव हो ....॥ वो जो गुंज माल पहनें हैं वह कैसा सुख दे रही उन्हें फिर और आगे प्रगाढ़ कि उनके नेत्र मोहे देखें तो कैसा लग रहा उन्हें फिर उनके अधर क्या सुख पाते ....। मेरे स्पर्श से क्या सुख उन्हें । ऐसा उनसे एक होने पर ही तो पता चले न कि उनमें मैं वही बन रहूँ जब तो ....।फिर उनके हृदय की व्याकुलता से अपना ही नाम पुकारना प्यारी जू श्यामा जू स्वामिनी जू ....॥ कहाँ वे हैं और कहाँ मैं ये पता ही नही कौनसे वे कौनसी मैं पता ही नहीं दोनो में दोनो कहाँ पर पता ही नहीं .....।तो सोचा क्या अपना ही नाम अपने ही मुख से कोई क्या सोचेगा पर ये तो उनके हृदय की पुकार है लेकिन ये किसी को कैसै पता सो सब सोचे कि पागल हो गयी है कि प्रियतम की जगह अपना ही नाम पुकार रही ....। फिर और गहरा कि उनका विरह अनुभव हो रहा लग रहा कि जैसै रोम रोम जल रहा मेरा किसके वियोग में स्वयं मेरे अपने ही वियोग में ......ओह कितनी पीड़ा सहते वे मेरे लिये ॥ उनके विरानल को अनुभव कर जल रही मैं .....असहनीय है यह ॥ तत्क्षण उनके हृदय से लिपट ये विरहानल शान्त करूँ उनका ।सदा नेत्र सन्मुख ही बनी रहूँ । सदा संग ही रहूँ उनके आलिंगित ही बस अंगो से अंग मिलाये .......कि विरहानल न झुलसाये मेरे श्याम को प्रियतम को .....॥
[4/18, 20:50] Mridula Fb: ये समझ नहीं पाती कि किस प्रकार व्यक्त करना चाहिये क्योंकि ये मेरे नहीं पर फिर भी मेरे है॥ बडे संकोच के साथ ये लिखा है क्योंकि किसकी अनुभूति है किस भाव से लिख रही समझ नहीं पाती आप न जाने क्या सोचो ॥ बस ये समझना कि इस देहधारी के हृदय में बैठ कोई उनकी प्यारी ही जता रही यह बस ॥ और मैं बिल्कुल अलग इससे ॥
[4/18, 21:13] Mridula Fb: ये दोनो इस तरह एक में एक है कि जो भी प्रियतम अनुभव करते मानो जैसे वे अपने चरण कमल धरा पर रखे तो वे क्या स्पर्श अनुभव करते वो अनुभव प्रिया जू के चरणो मे होता और प्रिया जू जैसै जब चरण धरें तो उनकी अनुभूति प्यारे को होती ॥ एसे ही इन दोनो की संपूर्ण स्थिती है परस्पर को ही अनुभव करते दोनो स्वयं को कदापि नहीं ॥ स्वयं को जानते ही नहीं परस्पर को ही स्वयं जानते पूर्ण रूप से ॥ परस्पर का सुख ही सुख परस्पर का विरह ही विरह अपना सब कुछ ही परस्पर ॥
[4/18, 21:18] Mridula Fb: यही कारण है कि जब प्यारे किसी अन्य गोपी का संग करते तो प्रिया उससे प्राप्त सुख पूरा पूरा अनुभव करती और प्रियतम के सुख की कमी को जान व्याकुल हो विरहानल में जलती जो गीत गोविंद मे वर्णित विरह है क्योंकि अन्यों से प्यारे को उतना सुख नहीं ॥ तो वस्तुतः प्यारे के सुख का अभाव हा श्री प्रिया की विरह पीड़ा है
[4/18, 21:19] Mridula Fb: जैसै संसार में हम स्वयं को अनुभव करते न वैसै वे दोनो परस्पर को ही अनुभव करते
[4/18, 21:19] Mridula Fb: पूरा पूरा
पता जब प्रियतम प्यारी के नेत्रों मे निहारते तो प्रिया उनको प्राप्त सुख को ही अनुभव करती तो वहां से हटती नहीं ॥ उनके सुखार्थ नेत्रों में नेत्र अडाये रहतीं जबकी कोई भी अन्य स्वयं को अनुभव करता तो अथाह सुख पा तृप्त हो जाता और कह उठता कि बस ....पर प्रिया जू कभी बस नहीं कहतीं ॥ लाल जू की तृषा और सुख दोनो को पूर्ण अनुभव करती वें ॥
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