!! हौं चरणनिं को चेरौ !!
-17-
अति भोरो स्याम कुंवर बर अति भोरि स्यामा कुंवरनि
प्रेमबंध्यो सुभग लाल लाड़लो सुघर सुलोल लाड़लि
द्विजन एक रसनिहु साधै सधै रस एकहू द्विरसहुं समानि
रूप छटा एक मन प्राणनहुं रसरंगै भ्रमर सम कमलनि
दोऊ सुखार्थ परस्पर परसै रस सुखहित सखिननि
बरसै पुष्प नभन सों उल्लसै धरा रस नीर भंवरनि
जुगल ब्याहुला सुफल भ्या सखिन संग वृंद बलिहारिनि !
-18-
जयमाल पहरै दोऊ ठाड़ै
नयन सों नयन मिलै अरूणारै
देख पिय रससूखनिहु ललचावै सखिन वृंद ठाड़ि मुस्कावै
मोहन मोहिनी भूलि सगरी नयनन सों नीर छलकावै
देख दसा स्याम प्रिया सखि सहचरि भेद सहजहि पावै
स्यामा हिय अब धीर धरै ना जयमालनि दूरि न सुहावै
पग ते झट पग धरि कै स्याम वर्ण लियो स्यामा सरमावै
कटि सों करबद्ध करि कै मोहन हिय सों हिय मिलावै !
-19-
लिपट रहै दोऊ रस दु रंग ज्यूं एक पात्र डारै
दामिनि घण सों लिपटै ज्यूं धरा अंबर इंद्रधनुस जुरावै
लता लिपट रही तमाल सों बांस की बंसी अधररस पावै
भ्रमर भूल्यो नेह जीवन सों सरोज रस ते रस है जावै
अतिहि निरालि रूप माधुरि रस रसिक रस गाढ़ौ चुवावै
हेरि हेरि सखिन सब रस है गई रास रस रस सों खिलावै !
-20-
वारि वारि जाएँ वृंद लतन तन सुक सारि मंगल सुनाए
छूटि हाँसि प्यारि सखिन की बंद किवार करि करि जाए
मोहन मोहनि रसजड़ परस्पर रहै मन दसन नयन उरझाए
सुरत केलि हेत कोक प्रवीण रति सुखदेन क्रोड़ लियो उठाए
पधारै राधिका मोहन सुमन सेज रस हित रस मनमंथ मनमंथ मथाय !
क्रमशः
"हौं चरणनिं को चेरौ"
-21-
रास रस खेलैं रास रस रसीले युगल रास रस सों नित नवेलै
निरख निरख दोऊ सब भूले चंद ज्यूं चांदनी हो खेलै
बिंदिया पायल बुलाक कंकन उरझ सुरझि कै बिखरै
काजल रेख काजल सों मिलि पुतलि पुतलिन प्रेम हिलै
गलमाल कंठहारनि सों लिपटी पीताम्बर कंचुकि बंध ढीलै
कटि किंकणि खनक भूलि करधनि कामरिया सरकि मेलै
चूनरी नीलाम्बर प्रेम रसमगे नीविं बंधन सब ही सुख सुहेलै
कर सों कर अधर सों अधर अंग प्रत्यंग सबहि मिलै अनमिलै !
-22-
रस ही रस चाखै सखी री
रसनहु रसन सों समाए रहौ
पिय सुख देत प्यारि प्यारि सुख पिय पाए हौ
अनमिले अंजानै ज्युं मिलित तनहू मिलि मिलि जाए हौ
इक रस चौवै दूजो पावै कौन किन सों रह्यो समाए हौ
ठाड़ि सखि निरख रहि रस रस सों रस होए जाए हौ
खोल किवड़िया हटाए लतन नयन सुख पाए हौ
चिरजीवो मोहन लाल लाड़लि नित नव रस चढ़ाए हौ !
-23-
नित नव मिलन नित नव युगल
नित नित अधर रस अधर सों पिए
नित नित हिय रस उछलै नित तृषा मिटाए
नित नित उदर सुघर नाभि सुरंग पिय लपाए
नित नित कटि भर कर कमल सों भुजपाश समाए
नित नित अंगनि सुअंगन पिय रस सुकेलि गहरो पाए
नित नित थिर थिर थिरकै रस भूमि में रस समुंद नव अंकुराए
बूझत ना बूझै प्यास ऐसी पिय प्यारि अनवरत प्रेम बरसाए !
-24-
नवल नवीन जोरि नवल विलसन नवल सुरति केलि
अजहू मिलै बिछुड़ै कबहू ना कबहू कै मिलै पिय मेलि
सुंदर स्याम सलोनि राधिके सुख दाननि सुख रसेलि
नवल नित रूप सुधा बरसै नवल नित नूतन रूप नवेलि
सुअंग नागरि अंग नागर सों लिपट लिपट प्रेम नव खेलि
अतिहू गहरो राग रंग तत्सुखनिहू मिलि मिलि रहै बिन मिलेहि !!
क्रमशः
Comments
Post a Comment