Skip to main content

हौं चरणनिं को चेरौ 2

!! हौं चरणनिं को चेरौ !!

                -17-
अति भोरो स्याम कुंवर बर अति भोरि स्यामा कुंवरनि
प्रेमबंध्यो सुभग लाल लाड़लो सुघर सुलोल लाड़लि
द्विजन एक रसनिहु साधै सधै रस एकहू द्विरसहुं समानि
रूप छटा एक मन प्राणनहुं रसरंगै भ्रमर सम कमलनि
दोऊ सुखार्थ परस्पर परसै रस सुखहित सखिननि
बरसै पुष्प नभन सों उल्लसै धरा रस नीर भंवरनि
जुगल ब्याहुला सुफल भ्या सखिन संग वृंद बलिहारिनि !

                      -18-
जयमाल पहरै दोऊ ठाड़ै
नयन सों नयन मिलै अरूणारै
देख पिय रससूखनिहु ललचावै सखिन वृंद ठाड़ि मुस्कावै
मोहन मोहिनी भूलि सगरी नयनन सों नीर छलकावै
देख दसा स्याम प्रिया सखि सहचरि भेद सहजहि पावै
स्यामा हिय अब धीर धरै ना जयमालनि दूरि न सुहावै
पग ते झट पग धरि कै स्याम वर्ण लियो स्यामा सरमावै
कटि सों करबद्ध करि कै मोहन हिय सों हिय मिलावै !

                         -19-
लिपट रहै दोऊ रस दु रंग ज्यूं एक पात्र डारै
दामिनि घण सों लिपटै ज्यूं धरा अंबर इंद्रधनुस जुरावै
लता लिपट रही तमाल सों बांस की बंसी अधररस पावै
भ्रमर भूल्यो नेह जीवन सों सरोज रस ते रस है जावै
अतिहि निरालि रूप माधुरि रस रसिक रस गाढ़ौ चुवावै
हेरि हेरि सखिन सब रस है गई रास रस रस सों खिलावै !

                           -20-
वारि वारि जाएँ वृंद लतन तन सुक सारि मंगल सुनाए
छूटि हाँसि प्यारि सखिन की बंद किवार करि करि जाए
मोहन मोहनि रसजड़ परस्पर रहै मन दसन नयन उरझाए
सुरत केलि हेत कोक प्रवीण रति सुखदेन क्रोड़ लियो उठाए
पधारै राधिका मोहन सुमन सेज रस हित रस मनमंथ मनमंथ मथाय !

क्रमशः

"हौं चरणनिं को चेरौ"

                       -21-
रास रस खेलैं रास रस रसीले युगल रास रस सों नित नवेलै
निरख निरख दोऊ सब भूले चंद ज्यूं चांदनी हो खेलै
बिंदिया पायल बुलाक कंकन उरझ सुरझि कै बिखरै
काजल रेख काजल सों मिलि पुतलि पुतलिन प्रेम हिलै
गलमाल कंठहारनि सों लिपटी पीताम्बर कंचुकि बंध ढीलै
कटि किंकणि खनक भूलि करधनि कामरिया सरकि मेलै
चूनरी नीलाम्बर प्रेम रसमगे नीविं बंधन सब ही सुख सुहेलै
कर सों कर अधर सों अधर अंग प्रत्यंग सबहि मिलै अनमिलै !

                  -22-
रस ही रस चाखै सखी री
रसनहु रसन सों समाए रहौ
पिय सुख देत प्यारि प्यारि सुख पिय पाए हौ
अनमिले अंजानै ज्युं मिलित तनहू मिलि मिलि जाए हौ
इक रस चौवै दूजो पावै कौन किन सों रह्यो समाए हौ
ठाड़ि सखि निरख रहि रस रस सों रस होए जाए हौ
खोल किवड़िया हटाए लतन नयन सुख पाए हौ
चिरजीवो मोहन लाल लाड़लि नित नव रस चढ़ाए हौ !

                       -23-
नित नव मिलन नित नव युगल
नित नित अधर रस अधर सों पिए
नित नित हिय रस उछलै नित तृषा मिटाए
नित नित उदर सुघर नाभि सुरंग पिय लपाए
नित नित कटि भर कर कमल सों भुजपाश समाए
नित नित अंगनि सुअंगन पिय रस सुकेलि गहरो पाए
नित नित थिर थिर थिरकै रस भूमि में रस समुंद नव अंकुराए
बूझत ना बूझै प्यास ऐसी पिय प्यारि अनवरत प्रेम बरसाए !

                      -24-
नवल नवीन जोरि नवल विलसन नवल सुरति केलि
अजहू मिलै बिछुड़ै कबहू ना कबहू कै मिलै पिय मेलि
सुंदर स्याम सलोनि राधिके सुख दाननि सुख रसेलि
नवल नित रूप सुधा बरसै नवल नित नूतन रूप नवेलि
सुअंग नागरि अंग नागर सों लिपट लिपट प्रेम नव खेलि
अतिहू गहरो राग रंग तत्सुखनिहू मिलि मिलि रहै बिन मिलेहि !!

क्रमशः

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हरिवंश की,जब लगि आयौ नांहि। नव निकुन्ज नित माधुरी, क्यो परसै मन माहिं।।2।। वृन्दावन सत करन कौं, कीन्हों मन उत्साह। नवल राधिका कृपा बिनु , कैसे होत निवाह।।3।। यह आशा धरि चित्त में, कहत यथा मति मोर । वृन्दावन सुख रंग कौ, काहु न पायौ ओर।।4।। दुर्लभ दुर्घट सबन ते, वृन्दावन निज भौन। नवल राधिका कृपा बिनु कहिधौं पावै कौन।।5।। सबै अंग गुन हीन हीन हौं, ताको यत्न न कोई। एक कुशोरी कृपा ते, जो कछु होइ सो होइ।।6।। सोऊ कृपा अति सुगम नहिं, ताकौ कौन उपाव चरण शरण हरिवंश की, सहजहि बन्यौ बनाव ।।7।। हरिवंश चरण उर धरनि धरि,मन वच के विश्वास कुँवर कृपा ह्वै है तबहि, अरु वृन्दावन बास।।8।। प्रिया चरण बल जानि कै, बाढ्यौ हिये हुलास। तेई उर में आनि है , वृंदा विपिन प्रकाश।।9।। कुँवरि किशोरीलाडली,करुणानिध सुकुमारि । वरनो वृंदा बिपिन कौं, तिनके चरन सँभारि।।10।। हेममई अवनी सहज,रतन खचित बहु  रंग।।11।। वृन्दावन झलकन झमक,फुले नै

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... परमानन्द प्रभु चतुर ग्वालिनी, ब्रजरज तज मेरी जाएँ बलाएँ... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... ये ब्रज की महिमा है कि सभी तीर्थ स्थल भी ब्रज में निवास करने को उत्सुक हुए थे एवं उन्होने श्री कृष्ण से ब्रज में निवास करने की इच्छा जताई। ब्रज की महिमा का वर्णन करना बहुत कठिन है, क्योंकि इसकी महिमा गाते-गाते ऋषि-मुनि भी तृप्त नहीं होते। भगवान श्री कृष्ण द्वारा वन गोचारण से ब्रज-रज का कण-कण कृष्णरूप हो गया है तभी तो समस्त भक्त जन यहाँ आते हैं और इस पावन रज को शिरोधार्य कर स्वयं को कृतार्थ करते हैं। रसखान ने ब्रज रज की महिमा बताते हुए कहा है :- "एक ब्रज रेणुका पै चिन्तामनि वार डारूँ" वास्तव में महिमामयी ब्रजमण्डल की कथा अकथनीय है क्योंकि यहाँ श्री ब्रह्मा जी, शिवजी, ऋषि-मुनि, देवता आदि तपस्या करते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री ब्रह्मा जी कहते हैं:- "भगवान मुझे इस धरात