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"हौं चरणनिं कौ चेरौ" 3

"हौं चरणनिं कौ चेरौ"

                  -25-
चंद चकोरि चकोरि चंद भए
दुदलनि रूपरंग रासि रस रसन रासि भए
पिय प्यारि सौं प्यारे प्यारो पिय प्यारि रूपै
रस लम्पट दोऊ रस आलोढ़न रस ही है गए
सखिवृंद रस झरोखै रसमगै जुगल समरस खेलै
केलि खिलावनि अंनत सखिन अंनत केलि करै
ज्यूं सुख चाहति संगी सहचरि त्यूं त्यूं मोहिनि पसरै
एकहू देहि राधिका माधब खेल विविध तन खेल रहै !

                     -26-
जाकि सुधि जु रस परसै ज्युं हिय ललक परसै
अलंकार सबहि मिलित त्यूं अंग अंग रस एकहु झलकै
मन सों मन तन सों तन रोम रोम सों नख सिख तांई मिलै
एकहु सेज तें दुरसि भांतिन भांति केलि सुखनिहु ललसै
भेद अभेद सगरे अभिन्न एकहू मन ज्युं प्रतिबिंबन निरखै
पिय प्यारि इत्र सम रसरूप प्यारै माहिं महकै छलकै
कलह कलहांति कौ नेह नेह सों भरि भरि अति चखै !

                        -27-
सुघर बिछावन तें राधिका माधब
मिलै रहै द्विजन एक सेजहि दूजो प्रेम सेज ते
स्यामा प्यारि अति सुकुमारि स्याम देहि ते सेजै
अंग अंगनि सों ज्युं समानि कमल मकरंद भीतर सहेजै
छुबत ना तनिक भी नख भर सुमननि प्रिय लियो भर अंसै
अर्धनिसा अति सुखैन सबहि चेतन जड़ कर दीनै
सखिन सब व्याकुलता भूलि बिसर स्वसुख जुगल सेवहितै
स्रम बूँदिन चमकै दोऊ देहि ज्युं तारे स्याम अकास ढलकै
ताम्बूल भींजन सीतल ब्यार बन धांई अंगराग चंदन उंडेलै
अति नेह भरी सहचरनि जुगल सौं प्रीति प्रीत प्रीतहुं कीनै !

                          -28-
रस सों मिलि रस सगरि भई
माधब राधिका राधिका माधब करि एकई
प्रेम कौ गति प्यारो ही जानै प्रेम गतिन सोई मानै
जिन जनावै आपहि प्रियतम तिन तिन लियो समानै
अधर भए लालि सरीखै काजर रेख स्याम करि जानै
ताम्बूल पीक कपोलन छकि अधररसहू नयननि सुखानै
जो सुख सेस महेस ना पावै सो सुख सखि आपणो कर मानै !

क्रमशः

"हौं चरणनिं को चेरौ"

               -29-
पिय प्यारि सखिन सों समानि
सखिन सब तिन माहिं बिस्राम पाहहिं
मंद बिहंसन मुस्कन बतरन चंचल चितवन
सब तालम ताल फुंकार झन्कार सुवासित स्वासन
रूम झूम सौरभ अंग आभूसन चमक चूड़ी कंकण
सम्माहित भई ज्यूं घन दामिनि सों तड़ित परिहांसन
सर्वसुख मंद ज्योत्सना मधुरिमा रसधार पुलकन सिहरन
रस निमज्जन भीगि भीगि भीनि सुखप्रेम हिलोरन
सर्व प्रेम परिधिन कौ पार सरसर झिलमिल बस्त्रन
स्मर-स्वरन कौ रागिनी सीं सीं मधुर सीत्कार तरसन
सब सर्व सम्माहित हुईं जुगल मांहि सखिबृंद सम्माहन !

                       -30-
पुलकित हिय मुखकमल सजल पिय
निरखै प्यारि मुख संतोस कर सुखदान किए
सुंदर स्यामा स्रम करि बूँदनि स्वछंद अधर कुच सौहै
अधमिलित मानिनि पूर्णखिलित मोहन क्रोड़ लइहै
कमल कमलनि चुम्बन परिरम्भन भर अंस ते बलि जइहै
सुंदर स्मित माधुरि प्रेम मिस ढुरक ढुरक प्रीति बहिहै
नंदनंदज निरखत प्रिया जु भावबिभौर फूलनि न समइहै
लै पीताम्बर रसबिंदु वक्ष् मुखनिहु ते पलकन धर लइहै !

                         -31-
मूँद लई अखियाँ प्यारि जु सुरतकेलि बिस्राम दी
मोहन प्रिय भर अंस जु प्यारि रसराज मन हार दई
स्रम कण जित सजै स्यामा जु ते नयन अस्रु बिंदु पई
हेर रहै इकटक बृसभानु ललि रति चिन्ह निठुर पुस्पन की
हाय मोहन नयन सजल बड़भागि ज्यूं प्रेम मूर्ति सों प्रेम रस पी
कोक निपुण कलह चित्त भरन स्याम स्यामा स्रमित भई
निरख निरख सुखचैन लूटहि सेबातुर अतिहु हिय भरि
सोबत स्यामा स्याम अंक भर लई !

                        -32-
रसातुर स्यामसुंदर रसपीर कौ लम्पता कहै
जानि जब प्रिया मीन सम नीर भई सेबातुर मोहन भयै
रूप धरै अंनत सहचरनि एकहू प्रियतम अनेक बिबिध हुए
ओढ़ प्रसादि सखिन कौ बस्त्र मोहन मोहिनि रसहुं मगै
भरि अंस पिय प्यारि बसन औढ़ा पहिया दिए ढीलै
सुमन सेज ते लिटाए दी सुकमलिनि सुमन सों बैठि छबि निरखै !

"हौं चरणनिं कौ चेरौ"

                -33-
रसिकराज भूरि सगरी ऐश्वराई
उठाए लियो उपकरण सर्व प्रिया सुख तांई
स्यामा प्यारि सुमन सेजरिया कोमलांगि सुमन सों सजाई
इक कर सुमन कौ भींजन दूजै गुलाब इत्र लै दियो महकाई
मंद मंद भींजन करै मोहन अजहू प्रिया मुख देख न अघाई
अखियन सों नेह रस बरसै चंचल मुख रह्यो चंद मुस्काई
अधर सुधा रस प्रिया अधरन ते चमकै प्रिय हेरि अधर सिहराई !

                     -34-
सुघर सलोनि अरूणारी मुंदित अखियाँ प्रिय अखियन समाई
निरख निरख रसभीजै नयन मोहन पलकनि लियो सुघराई
काजर पिय प्यारि नेत्रन सों ढुरकि घेरि स्याम रँगाई
सिंदूर बिंदिया ललाट सों ढरकि कै अलकन माहिं सजाई
कर्णफूल मधुर दामिनि सम बिस्राम कपोल तें पाई
गलमालिनि जित सजि वक्ष् ते करधनि कटि सों लिपटाई
हेरि हेरि प्रियतम बड़भागि सबनिहु कौ मनाई !

                      -35-
बर्बस प्रेम छलक गयो सुंदर स्याम ज्यूं भींजन करै
पुतलिन अखियन की झप झप ना झपकाए
इत चंवर झूमै उत प्यारि कौ मुख पवन सम चूमै
झीनि कंचुकि प्यारि हिय तै रसझीनि चूनर उड़ाए
जित जित सरस ब्यार चलै उत तै बस्त्र रस ढुरकाए
सुलोल उदर सुरंग नाभि निरख पिय नेत्रन सुख पाए !

                      -36-
बिस्रामित पिय प्यारि ल्यै निंदिया मोहन मंद गुनगुनाए
सुखदान पावै प्यारि मोहन सुख देत ना अघाए
सुकोमल स्पर्स सौं प्रियतम बेणि प्रिया कौ सुरझाए
बिनु पुस्पन सिंगार सौं हाय !सर्प सी स्याम कौ उरझाए
सरस अंगुरिन छुअन तैं प्यारि स्वप्न संगम सुख पाए
मंद मुस्कन सजै अधरन तै सोति प्रिया तनिक मुस्काए
अति प्यारि छबि पिय भींजन सुख प्यारि की सखि हिय समाए !!

"हौं चरणनिं कौ चेरौ"

                -37-
बीति जाए रजनि पौढ़ि पिय सुबदिनि
चंचल दोऊ नयना भ्रमर भए बिराजै सेवाकुंज कमलदलनि
मंडरात इत उत सरस मदचित्त स्याम पंखन भींजन सुसीतलनि
आजहू भ्रमर महकरस चाखै निरखि सुलोल मकरंद झरनि
नयनन सुख पावै अलकनि सुरझावै भ्रम भयो खेल खिलावै बसननि
स्यामल रंग सुरंग गुनगुन गुनावै राग मधुप पिय सतरंग सरोजिनि !

                -38-
सहचरि रूप धर मनमोहन सेबासुख चाखै
स्रमबिंदु ललाट सौं रससुधा अधरन गुलाबी मुख बांचै
कर भींजन निरख सुरख सुरति चंचल मोहन ना अघावै
देख अद्भुत सुख पिय पाए लता पता करील सुक सीर मुस्कावै
अनोखि प्रीत रससमुंद रस में भींजति रसनहू सरसावै
सहेज सहेज रसकांति सजल जलज जड़ चेतनता पावै
सखिन सब जस की तस ठाड़ि
प्यारि सुख निंदिया मोहन गोदि सजावै !

                 -39-
गहरि रतिया गहराई निंदिया
स्वप्न संगम सौं प्रीति करि राधिके
आजहू सुरति केलि कर अति अल्साई
पौढ़ि प्यारि मोहन क्रोड़ अति सुख पाई
सुंदर छबि रूप माधुरि मंद रसभीजि मुस्काई
लई करवट सरअनंग सुंदर इक इक अंग दमकाई
पलटि राजकुंवरि सेज तै लियो रसतनु सरकाई
पिय गोदि सौं लुढ़कि प्यारि प्रसून सम कोमलता बिखराई !

                         -40-
देख बलिहारि भयो बिहारी
हाय !अंग प्रत्यंगनि सखी प्रिया सुमन सल सम यों सरकि
ज्युं सरोज दल ससि मुख निरखत सम सम रहै झुकि
ज्युं स्वप्न माहिं गोदि सौं ढरक प्रिय मोहन अंसन जाए लगि
आनंदचित्त नेह भरयौ आभूसन सबहि संग सुमन लपटि
थिरकन मधुरम झन्कार पैंजनि कंकण झनझन पिय हिय सुखनि !

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