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हमारो धन राधा श्री राधा , मृदुला

हमारो धन राधा श्री राधा श्री राधा

किसका धन हैं श्री राधा । क्या हम ये गीत गाने वालो का धन हैं वास्तव में श्री राधा ॥ श्री राधिका तो धन हैं रसिकों का । रसिक कौन , जो रस पाने को आकुल ना वरन जो रस पान कराने को व्याकुल युगल को ॥  यह भावना उदित कहाँ से होती प्राप्त कहाँ से होती....॥जब प्रेम प्यासे किसी जीव के विरहानल से दग्ध होते हृदय की लपटें नित्य धाम तक पहुँच श्री किशोरी को व्याकुल कर देती ॥ उसकी सच्ची प्रेम चाह देख श्री प्यारी जू के करुणामय नेत्रों से करुणा की एक नन्हीं सी कणिका झर जाती ॥ लाडली के कमल दल लोचनों से झरा यह करुणा मुक्ता उनकी सखियों के ममत्व पूर्ण हृदयों में भरी दया का आश्रय लेकर उनके सुकोमल नयनों से  दृग बिंदु बन छलक जाता ॥ सखियों के दृगों से छलका यह दृग बिंदु मंजरियों के लिये कृपा आदेश हो उनके द्रवित हृदय को और द्रविभूत कर भेज देता उन्हें उस विरहित प्रेम प्यासे जीव के पास ॥ किशोरी करुणा से अभिसिंचित सखियों की कृपा से पगी ये मंजरियाँ उस प्यासे जीव पर कृपा वर्षण कर दिव्य प्रेम का रस अणु उडेंल देती ॥और उदित करता वास्तविक भाव उस कृपा संयुत हृदय में ॥ तब अनुभव करता वह हृदय कि प्रेम का स्वरूप क्या है और यही स्वरूप उसका स्वयं का स्वरूप हो जाता ॥ प्रेम का वास्तविक अर्थ" देना "प्रकट ही तब होता है ॥मन प्राण सब व्याकुल हो उठते देने के लिये । सब कुछ अर्पण हो जाता स्वतः ही बिना प्रयास ॥ सर्वस्व अर्पण के बाद प्रकाश होता प्रियतम सुख का अर्थात् श्री राधिका स्वरूप का ॥ तन मन प्राण आत्मा सब हो जाती श्री प्रिया की ॥ रोम रोम पुकार उठता स्वामिनी मम् स्वामिनी मम्  प्राण अधिष्ठात्री श्री राधे ॥ अपना जीवन सर्वस्व हो जाती श्री लाडली जू ॥ दिन रैन अहिर्निश बस उन्हीं की स्मृति उन्हीं का चिंतन ॥ उनके सुकोमल पद पल्लव जीवन सार हमारे ॥ जहाँ श्री चरण धरों प्यारी जू प्राण बिछाऊँ अपने श्यामा ॥ संग संग डोलूँ कबहु न भूंलूँ कबहुँ न तजुँ साथ तुम्हारा ॥ हे लाडली तुम ही जीवन तुम ही श्वास हमारी हो इन प्राणों की परम निधि तुम तुम ही प्राण हमारी हो ॥ दो निज सेवा का वर ललित लाडली करहुँ अनुग्रह इस दासी पर क्षण को न छिटकुँ पल को न बिछडुँ रहुँ सदा बस  छाया सों ॥ चंवर डुलाऊँ पद मेहंदी रचाऊँ हिय सुख उपजाऊँ अंग अंग बलि जाऊँ ॥किस विधि तोहे लाड लडाऊँ किस विधि तोहे पिय मिलाऊँ ॥ तू प्राणों की सार हमारी किस विधि तोहे प्राण समाऊँ ॥ तू ही तो बस एक धन हमारो तू ही बस प्राणन ते प्यारो ॥ नयनों की पुतली प्राणों की ज्योति हृदय को मोती प्यारी हमारो ॥
हमारो धन राधा श्री राधा श्री राधा

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