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"हौं चरणनिं कौ चेरौ" 4

"हौं चरणनिं कौ चेरौ"

                -41-
एकहु रस रंगै रहै एकहू प्राण दोऊ नेकि
जु भाव करै पिय तु प्रेम सुख सहज हेति
निंदिया हारि बैठि तहाँ दु फूलि मग्न सचेति
पावै सेवन कू पावन सुख एक दोऊ रहै अचेति
वृंदा विपिन सुख पाय्हौ जड़ तृण सबहिं सत्चेति
हास परिहास भाविहि परिरंभन सखिन हिय समेति !

                       -42-
सरकि भानूकिसोरी पिय अंसन मांहि
इत पिय रस अति बाढ़्यो सेवौं न बिसरांहि
सिरहाना सुमन सुकोमल दई प्रिया सुख हेत तांहि
स्याम सुंदर तनिक सरक गयो स्यामा चरणनिं लपटाहिं
लेत चरण कमल हस्त तैं तन मन दोऊन कौ सिहराहिं
अति सुकोमल स्पर्स सुख प्रिया अंसन सौं वक्ष् समाहिं
स्वप्न संगम सुरति सुख सेज सजि प्रिय हिय लगाहिं !

                      -43-
स्याम गौर अंगनि सुअंग रस बाढ़ि
प्रिया संगम सुख देति छिन छिन प्रीत प्रगाढ़ि
दोऊ कर सौं एक चरण फेर दूजो दोऊन सौं सैहलाहि
ज्यूं ज्यूं पदकमल चापै मोहन त्यों त्यों प्यारि समाहि
इत स्यामा भावसंगिनि गहराए उत स्याम सुख पाहिं
दोऊ सुकोमलांगि दोऊन रहै दृगन सौं रसहूं बहाहि !

                        -44-
स्यामा पद चापत मोहन निसि दियो बिताई
भावस्वरूपा राधिका भावहूं सौं रहि समाई
अद्भुत प्रेमस्मित छबिन कौ सहचरिन हिय सुधाई
स्याम सहचरि भेस सौं अनंत सेबन कौ सुख पाई
भींजन पद प्रक्षाल्ण कियो सगरि निसा चरणनिं बिताई
अखियाँ मीचै कभहूं सींचै रस प्रेम कौ रह्यौ गहराई  !

क्रमशः

"हौं चरणनिं कौ चेरौ"

               -45-
नयो निकुंज नयो रस नयो भाव उकेरौ
नयो स्याम नयो स्यामा दुल्हो दुल्हिनि सुख साधौ
नयो सिंगार नयो नेह नित नयो रचै लीला प्रेम अगाध
दोऊ नित नयो रस चाखत नित नयो नयो होय भासत
करै बखान सबिहिं नित नित नयो रसना सों उचारत
अधर पिय हिय प्रिया सुरति रस नित नयो रंगावत
करै नित न्यारो दुलार नित नित नयो रास उपजावत
चरण पलोटत राजरानी कौ नित नयो उल्लास जगावत !

                       -46-
हौं चरणनिं कौ चेरौ स्वामिनि
आजहू मोहन रति सुख सौं गहरो नेह पावै
मुख चंचल पिय प्यारि कौ निरखि नयन भरि लावै
अस्रु रस रूप सजै कपोलन तै हिय चिन्ह देखि अघावै
ऐसो सुख देत हौ प्यारि रोम रोम रति नाँव पिय लिखावै
लै रसलम्पट लूटहिं सब तेरो सुख तू लूटि परि मुस्कावै
आजहू मोद स्यामसुंदर कौ नयन गगरि सौं चरण प्यारि धुलावै !

                       -47-
इत रस कण ढुरक सहेजै चरण पिय प्यारि
उत स्वप्न देखि प्रिया रसघण तैं लुटि अरूणारि
अस्रु स्पर्स कियो चरणनि तै रति चिन्ह अधरनारि
पीक छूटहिं पान अति भारि मसि बिंदु कंठ रंगारि
पिय पाय सुख चरणन बैठि उत प्रिया हिय रस लुटाहिं
आजहू रस बढ़यौ अति गहरौ स्यामास्याम उरझाहिं !

                      -48-
कर कमल सौं चरणनिं परै मोहन
मुख कमल प्रिया उरोज रस चाखै
अति कोमल भाव प्रिय प्रिया डूब आजहू जाहै
सहलावत जित प्रेम सौं पदकमल उत प्रिया हिय लगाहै
सहचरि रूप धर मोहन आजहू मोहिनि ठगि ठगि इतरावै
उत मोहन चरणनिं कौ दास इत स्वामिनि सुरति दासि कहावै
रस कुच फूलि फूलि प्यारि हिय प्रीतम परौ चरण पुजावै !

क्रमशः

"हौं चरणनिं कौ चेरौ"

                   -49-
जावक जुत चरण ललि कै
कर लै मोहन स्पर्स रस पावै
हा राधा हा राधा पुकारत हौं दास दास कहावै
धीर अति होए कै प्यारो नयनन नेह बरसावै
भर दोऊ कर सौं चरणनिं लिपट लिपट न अघावै
इत स्याम डूबत जात उत स्यामा अधीर रस ढुरकावै
ऐसो जड़ वश भयो पैंजनि पद लगि अस्रु रस पावै
धीर अधीरन स्याम स्यामा सुनि झन्कार अकुलावै !

                       -50-
टेरि अखियन निर्झर बहैं स्यामा स्याम अंक भरि
लपटात रह्यौ चरणनिं सौं प्यारो प्यारि रस उंडैर रहि
पूर्ण रैन तुव बैठि बिताई हाय मोहन काहै दासि पद परि
उठत स्यामा पिय सेज बिठाई लगि रसनहू सिंगारि
प्रेम सुरति तै इक इक भूसन रसन कौ दियो सजाई
रसन कौ मुकुट मोर पख वारयौ रसन हू कौ कटि फेंट धराई
रस हू कौ चंदन तिलक लग्यौ रसनहू की बेसरि करधनि पाई
रस हू कौ पीताम्बर रस हू की गलमाल रस बनि स्यामा ढुराई
बीति निसि स्याम सेब्यौ राधिका ऊसा स्यामा दियो महकाई
फूलि रहै दोऊ फूलनि हिय कमल दल लोचन उरझाई
रस कलस कू कुच भर पिय प्रिया कस कंचुकि लिपटाई !

                         -51-
रंगै एक रस नेह सौं युगल सुक सारि रैन भुराए
नाच उठै सर्ब तृण रति सुख प्रिया प्रियतम पाए
सखि बृंद छेरि दियो हिय बीणा तार सौं अंगुरिन थिरकाए
मंगल गीत गावत ताल पत्र मयूर हंसनि चालि मनभाए
आजहू अजब रोग कौ निबैरो प्रेम रस सौं स्नान कराए
पिय प्यारि कै अंकनि सजै प्यारि रहि अति नेह ढुराए !

                       -52-
सम्पूर्ण खैरि खैल्यौ युगल बर दोऊ हिलि मिलि रैन बिताई
ब्याहुला नित नव सखिन हियं सौं नित नव रंग रंगाई
स्याम स्यामा नित नव दुल्हो दुल्हिन सौं नेह करै बलि जाई
चिरजीबौ ओ जुगल बर बधू द्वि फूलि इक रस नेह समाई
खोलि किवार ज्यूं निरख्यौ भीतर जुगल मिलै दोऊ हर्षाई
अतिहि न्यारि छबि आजहू सखिन बृंद हिय बसाई
स्यामा आजहू नीलबर्ण भई स्याम पिया गौर देहि सौं प्रिया अंसन लपटाई !!

जय जय श्यामाश्याम !!

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